समता सहकारी बैंक की स्थापना वर्ष १९८३ में स्वर्गीय अमरनाथ सिंह के कुशल प्रयासों के माध्यम से हुई थी | बाद में उनके मृत्यु हो गई तो उनके छोटे भाई स्वर्गीय निर्भय सिंह ने इस बैंक के सञ्चालन का दायित्व संभाला | निर्भय सिंह महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल के निजी सहायक थे और उनके बारे में कहा जाता है कि वह उत्तर भारतीयों को सबसे बड़े हितैषी थे | राजनीतिक दुनिया में होने के बावजूद भी वह कभी राजनीति का हिस्सा नहीं बने | लोग उन्हें अजातशत्रु कहते थे | वर्तमान में स्वर्गीय निर्भय सिंह जी के सुपुत्र श्री सुनील सिंह इस बैंक के चेयरमैन हैं | सुनील सिंह ने अपनी क्षमता, पात्रता और योग्यता के माध्यम से इस बैंक का शानदार कर रहे हैं | आपके सुयोग्य नेतृत्व में समता सहकारी बैंक लिमिटेड का वित्तीय प्रदर्शन बेहद अच्छा साबित हुआ है | अभ्युदय वात्सल्यम पत्रिका से हुई विशेष बातचीत में समता सहकारी बैंक लिमिटेड के चेयरमैन श्री सुनील सिंह ने बैंक की शुरूआती यात्रा से लेकर बैंकिंग क्षेत्र के कई अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर बातचीत की | प्रस्तुत है बातचीत के सम्पादित अंश –
समता सहकारी बैंक की स्थापना कब और कैसे हुई ?
समता सहकारी बैंक की स्थापना वर्ष १९८३ में हुई थी | मेरे बड़े पिता स्वर्गीय अमरनाथ सिंह जी ने इस बैंक की स्थापना की थी | वो एक ऐसा दौर था जब मुंबई में उत्तर भारतीयों को प्रताड़ित किया जाता था , जब उत्तर भारतीयों को बहुत हीनता की दृष्टि से देखा जाता था | ऐसे दौर में अमरनाथ जी ने बैंक की स्थापना कर उत्तर भारतीयों के सम्मान को बढ़ाने का काम किया था | अमरनाथ सिंह जी लोहिया विचार मंच से जुड़े थे और वह लोहिया जी के विचारों से बहुत प्रभावित भी थे | सांताक्रुञ्ज , जुहू और विले पार्ले जैसे क्षेत्रों में हॉकर्स मार्केट का गठन उन्होंने ही किया था | वह हॉकर्स मार्केट यूनियन के अध्यक्ष थे और अध्यक्ष के रूप में अपनी बात सरकार के सामने बेझिझक रखते थे | उन्होंने उस समय महसूस किया कि उत्तर भारतीयों को बैंकों के चक्कर में काफी परेशान होना पड़ता था, इसलिए उन्होंने कॉपरेटिव बैंक शुरू करने के बारे में विचार किया | मेरे पिता स्वर्गीय निर्भय सिंह जी महाराष्ट्र के बड़े नेता रहे वसंत दादा पाटिल के निजी सहायक थे | पिता जी ने यह बात वसंत दादा को बताया कि उनका इस तरह का एक विजन है | १९८३ महाराष्ट्र की सरकार ने को – ऑपरेटिव बैंकों को लाइसेंस देना बन्द कर दिया था | उस सन्दर्भ में वसंत दादा ने उनकी मदद की और परिणाम यह हुआ कि उनके प्रयासों से आखिरी लाइसेंस समता को मिला | बैंक को लाइसेंस तो मिल आया लेकिन कई लोग यह कहने लगे कि यह बैंक नहीं चल पायेगा | तरह – तरह की नकारात्मक बातें होने लगीं | जब इस बैंक की शुरुआत हुई तो उत्तर भारतीयों ने १०-२० रुपये से अपना खाता खोला था | हमने सोचा था कि आज १० से शुरुवात हुई है तो आगे २० फिर ४० से होगी | आज ऐसा हो गया है कि इस पूरे इलाके में किसी भी उत्तर भारतीय को कोई भी तकलीफ होती है तो वह बिना किसी हिचक के आ जाता है और अपनी जरुरत के हिसाब से उधार ले जाता है | धीरे – धीरे यहाँ हर एक प्रान्त के लोगों ने अपना खाता खोलना शुरू कर दिया | आज इस बैंक से कई उद्योगपति भी जुड़े हैं , उनका भी खता यहाँ है | समता में लोगों की एक आस्था है , एक विश्वास है , यहाँ अपनापन है | इसलिए इस क्षेत्र के लोग हमारे पास ही आते हैं , जबकि कई पब्लिक सेक्टर और प्राइवेट सेक्टर के बैंक यहाँ खुले हैं |
वर्तमान में समता की कितनी शाखाएँ हैं और इस बैंक में कितने कर्मचारी काम करते हैं ?
जब इस बैंक का उद्घाटन हुआ तब ७-८ कर्मचारी थे और आज १०० कर्मचारी हो गए हैं | वर्तमान में हमारे पास कुल ४ शाखाएँ हैं | समता बैंक की पहली शाखा वर्ष १९९८ में बांद्रा में खुली थी जिसका उद्घाटन तत्कालीन पुलिस कमिश्नर एम. एन. सिंह , पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह, सुप्रसिद्ध चित्रकार एम.एफ. हुसैन और फ़िल्मी दुनिया के कई प्रसिद्ध सितारों ने किया था | दूसरी शाखा ओशिवरा में खुली , उसका उद्घाटन महानायक अमिताभ बच्चन जी ने किया था | तीसरी शाखा मलाड में खुली, जिसका उद्घाटन अभिनेता गोविंदा जी और एम. एफ. हुसैन जी जैसे लोगों ने किया था |
अपने पिता स्वर्गीय निर्भय सिंह के व्यक्तित्व के बारे में कुछ बताएँ ?
मेरे पिता निर्भय सिंह जी महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वसंतदादा पाटिल जी के निजी सहायक थे | वह उस समय एलएलबी किये थे जब पढ़ाई हर मामले में कठिन होती थी | एक दौर ऐसा था कि जितने भी उत्तर भारतीय नेता हैं सबके गॉड फादर मेरे पिताजी ही थे, वो सबकी मदद करते थे| मेरे पिताजी का दायरा ऐसा था कि शरद पवार से लेकर संजय निरुपम, कृपाशंकर सिंह, विलासराव देशमुख जी सबको अच्छे से जानते थे | वह काँग्रेस , भाजपा और शिवसेना सभी पार्टियों के नेताओं से जुड़े थे और सबके साथ उनके अच्छे ताल्लुकात भी थे | पिताजी के राजनीतिक रिश्ते काफी अच्छे थे लेकिन ऊपरी तौर पर वो कभी राजनीति में प्रवेश नहीं किये | कभी कोई चुनाव नहीं लड़े | वह अजातशत्रु की तरह थे , उनकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं रही | उनका नाम ही निर्भय था और सच में वह कभी किसी से डरे नहीं |
कॉपरेटिव बैंकों के सञ्चालन में किस तरह की चुनौतियाँ आती हैं ?
चुनौतियां काफी बढ़ गई हैं क्योंकि पिछले १० सालों में आरबीआई के मानदंड काफी बदल गए हैं | अब चाहे किसी भी क्षेत्र का बैंक हो , पब्लिक सेक्टर का हो , प्राइवेट सेक्टर का हो अथवा को – ऑपरेटिव हो , सभी बैंकों को समान रूप में कार्य करना होता है | हमारे यहाँ जब ऑडिट होता है तो एक ही सवाल सामने आता है कि कहीं आप किसी राजनेता से तो नहीं जुड़े हैं ? उनका यह सवाल पूछना लाज़िमी है क्योंकि अधिकांश को – ऑपरेटिव बैंकों में राजनेता ही होते हैं | हम उन्हें कहते हैं कि हमारा बैलेंस शीट आपके सामने है , आप देख लीजिये किसी भी नेता का कोई अकाउंट हमारे बैंक में नहीं है | हम उन्हें बताते हैं कि किसी राजनेता के डैम पर हमारा बैंक नहीं चलता | हम कभी किसी नेता के लिए बैंक के कानून से हटकर कार्य नहीं करते | चाहे कोई नाराज हो या खुश | बैंकिंग सेक्टर में हम निजी रिश्ते नहीं निभा सकते | अगर कुछ गड़बड़ होता है तो आरबीआई सीधे कहती है कि आप या तो विलय कर लीजिये या फिर बंद कर दीजिये |
डिजिटल बैंकिंग के आने से बैंकिंग सेक्टर को आपने किस तरह परिवर्तित होते देखा है ?
डिजिटल बैंकिंग के माध्यम से बैंकिंग प्रणाली आसान हो गई है | डिजिटल बैंकिंग की वजह से बैंकिंग व्यवहार में सुगमता आ गई है | सभी बैंकों की तरह समता बैंक ने भी खुद का ऍप बनाया है , हमारा खुद का डेबिट कार्ड है | हमने आरबीआई के सारे गाइडलाइंस को पूरा किया है | आरबीआई के कोर बैंकिंग निकालने से पहले ही हम इस दिशा में काम करना शुरू कर दिए थे |
आप इस बैंक से कब जुड़े ?
मैंने २००७ में शुरुवात की थी| जब मैंने अपना पद संभाला था तब मुझे बैंक का अ , ब स भी नहीं पता था | लोग कहते थे ये क्या सोच लेकर चल रहा है। तब मुझे सिर्फ चालू खाता, बचत खाता यही पता था। जब मैंने काम करना शुरू किया तब हमारे एनपीए थोड़ी दिक्कत में चल रहे थे| तब मेरे दिमाग मे आया कि हमें सारी चीज़ें ऑनलाइन करनी चाहिये | उसके ६ महीने बाद ही आरबीआई के गाइडलाइन्स आये कि सारे को – ऑपरेटिव बैंकों को अपना सीबीएस पूरा करना होगा जिसके लिए २ साल का वक़्त दिया गया था | चूंकि हमने इस पर पहले से ही काम करना शुरू कर दिया था तो आरबीआई के गाइडलाइन्स आने के ६ माह बाद ही हमने अपना पूरा काम कर दिया ।
मुद्रा योजना के बारे में आपका क्या विचार है ?
केंद्र सरकार ने छोटे उद्यम शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) शुरू की है | इसके तहत लोगों को अपना उद्यम (कारोबार) शुरू करने के लिए छोटी रकम का लोन दिया जाता है | लेकिन आज लोग इसकी आड़ में इस लोन का प्रयोग व्यक्तिगत कार्यों में करने लगे हैं | इसके मापदंड बड़े हैं इसलिए इसमें दिक्कतें भी बहुत हैं |