एसबीआई म्युचुअल फण्ड के कार्यकारी निदेशक एवं मुख्य विपणन अधिकारी डी. पी. सिंह को भारतीय वित्तीय जगत, विशेषकर म्युचुअल फण्ड जगत में एक कुशल रणनीतिकार के रूप में जाना जाता है। उनके सुयोग्य नेतृत्व में एसबीआई म्युचुअल फण्ड ने सफलता की ऊंचाइयों को स्पर्श किया है । अभ्युदय वात्सल्यम् के प्रधान संपादक आलोक रंजन तिवारी ने डी. पी. सिंह से म्युचुअल फण्ड सेक्टर की वर्तमान स्थितियों और चुनौतियों से सम्बंधित विभिन्न विषयों पर बातचीत की । बातचीत के दौरान श्री सिंह ने म्युचुअल फण्ड मार्केट के स्वाभाविक पक्षों पर अपना विचार साझा किया। श्री सिंह ने एसबीआई म्युचुअल फण्ड की वर्तमान रणनीति और मार्केट स्कीम्स को भी लेकर बातचीत की । प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश –
इस समय म्युचुअल फण्ड मार्केट की जो स्थिति है , वह आपके अनुसार कैसी है ?
जब हम म्युचुअल फंड्स की बात करते हैं तो उसमें दो तरह की सिक्योरिटी होती है । म्युचुअल फंड्स में डेड सिक्योरिटी होती है और जो इक्विटी शेयर्स होते हैं उसे स्टॉक्स बोलते हैं। चाहे कोई भी एसेट क्लास हो, डेड हो या इक्विटी हो, इन दोनों की स्थिति ये मान के चलिए कि अंडरलाइन से अलग नहीं हो सकती । किसी भी म्युचुअल फंड्स का फॉर्च्यून अंडरलाइन मार्केट से अलग नहीं हो सकता । इसका असर आएगा ही आएगा चाहे वो इक्विटी हो । अगर ये नीचे जायेगा तो म्युचुअल फंड्स की स्कीम भी नीचे जाएगी और डेड में नीचे जाएगी तो इसमें भी थोड़ा नीचे जायेगा । परन्तु फण्ड मैनेजमेंट का काम है कि वो रिस्क को कम करे । जैसे नीचे जाती है तो कम नीचे जाये और ऊपर जाती है तो ज्यादा ऊपर जाए । डेड में भी ये है कि इंटेरेस्ट रिस्क होता है , क्रेडिट रिस्क होता है और किस तरह लोगों का पैसा लेकर रिस्क को कम किया जाए जिससे किसी का नुकसान न हो । क्योंकि एक्सपर्ट मैनेजमेंट का काम ही यही है और वो इस काम में चौबीस घंटे लगे रहते हैं । थोड़ी सी फीस देकर एक्सपर्ट को हायर कर लेना चाहिए और इसके बारे में पूरी जानकारी निकाल लेनी चाहिए । क्योंकि म्युचुअल फंड्स कोई जादू की छड़ी नहीं है । पर इतना है कि लंबी अवधि के लिए म्युचुअल फंड्स अपना बेहतरीन पर्फॉर्मेन्स देगा और अच्छा आउटपुट देगा।
निवेशकों को निवेश करते समय किन – किन विषयों पर अधिक ध्यान देने की जरुरत होनी चाहिए ?
सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि किसी भी निवेशक को जिस प्रोडक्ट में पैसा डालना है, उसके बारे में उसे पूरी समझ होनी चाहिए । किसी भी निवेशक को किसी के कहने पर पैसा इन्वेस्ट नहीं करना चाहिए। क्योंकि आज के दौर में किसी भी चीज की पूरी जानकारी लेना बहुत जरूरी है और वो भी भरोसे मंद आदमी से । वो कितना रिस्क ले सकता है ये बताना बहुत जरुरी है । कई बार क्या होता है कि कोई भी व्यक्ति किसी मूड में बैठा होता है और बैठे – बैठे सोचने लगता है कि चलो यार हम रिस्क ले लेंगे और वो रिस्क लेता है । फिर बाद में ये सोचता है कि मैं तो रिस्क लेने के लिए तैयार ही नहीं था । मेरा पैसा तो सिक्योर था, ये मेरे किसी काम में आने वाला था । जैसे एक साल बाद मेरी बेटी की शादी होने वाली है या छह महीने बाद मुझे इसे किसी काम में वह पैसा लगाना था। तो ऐसे पैसों को इक्विटी में डाल दिया जाता है । अगर उस समय भी व्यक्ति पैसा डालता है तो कम से कम उसके पास ३ से ४ साल की अवधि होनी चाहिए। उससे कम अवधि की बहुत सी स्कीम है, जैसे डेड स्कीम है , हाइब्रिड स्कीम है, उनमें पैसा डालना चाहिए। उसे उस हिसाब से देखना जरूरी है कि उसकी जरूरत क्या है ? उसको क्या चाहिए ? यह ज्ञान भी उसे होना चाहिए कि वो किस में पैसा डाल रहा है ? ये बहुत जरूरी है । इसके लिए बहुत जरूरी है कि वो जिस डिस्ट्रीब्यूटर्स के माध्यम से पैसा डाल रहे हैं वो भरोसे मंद हो। विश्वसनीय डिस्ट्रीब्यूटर्स यह एक ऐसी चीज है जो कस्टमर्स के रिस्क केपॅसिटी को समझ कर उसे सही समाधान देती है। इसमें दो चीजें हैं एक तो हमे सब पता होता है, हम वेबसाइट पर जाकर पब्लिक डोमेन में अपना पैसा डाल सकते हैं और दूसरा हम अपना पैसा डिस्ट्रीब्यूटर्स के माध्यम से डाल सकते हैं। वो डिस्ट्रीब्यूटर्स कोई भी हो सकता है । एक इंडिविजुअल डिस्ट्रीब्यूटर्स भी हो सकता है, एक बैंक भी हो सकता है और एक नेशनल डिस्ट्रीब्यूटर्स भी हो सकता है । विश्वसनीयता का काफी महत्व होता है । जिस डिस्ट्रीब्यूटर्स के पास आप जा रहे हो उसके पास वो स्किल सेट है या नहीं , क्योंकि ऐसा न हो की आपको डेड स्कीम में पैसा डालना है और आप इक्विटी वाले के पास ही चले गए, जिसे उस स्कीम के बारे में कुछ पता ही नहीं है । फिर वो आपको क्या बताएगा ?
आने वाले समय में एसबीआई म्युचुअल फण्ड खुद को कहाँ स्थापित करना चाहता है ?
आज के दौर में म्युचुअल फंड्स की जो स्थिति है वह यह है कि ज्यादातर विकसित देशों में म्युचुअल फंड्स का जो हिस्सा है वो बैंक डिपाजिट से कहीं ज्यादा है । हमारे देश में बैंक डिपाजिट के २२ % हिस्से ये म्युचुअल फंड्स हैं तो ये एक दिन बढऩा ही है। मार्केट में अगर उतर – चढ़ाव ना हो तो वो मार्केट ही क्या। आज की तारीख में अगर किसी का सस्ते में बिका है तो किसी ने सस्ते में खरीदा भी है। क्योंकि आज वक़्त अच्छा है जिसमें हम मार्केट में पैसे डाल सकते हैं । क्योंकि मार्केट काफी डाउन हुआ है और वैल्यूएशन बढ़ी है। इसमें से कई लोग अपना पैसा डर की वजह से निकाल लेंगे, तो कुछ इसे सुनहरा अवसर समझ के इसमें पैसा डालेंगे। लेकिन एसबीआई म्युचुअल फंड्स इज कंसर्नड, जब तक पाई बढ़ेगी हमे फायदा होगा। क्योंकि हम एसबीआई की फैमिली से हैं। जैसे स्टेट बैंक भारत का सबसे बड़ा बैंक है तो हमारी स्वभाविक स्थिति भी बड़ी होनी चाहिए। ये एक हमारी लेगेसी है। अन्ततः हमें अपने स्वाभाविक जगह पर आना है ।
आप जो इंवेस्टमेंट सोल्यूशंस प्रदान करते हैं, उसकी विविधता के बारे में कुछ बताएँ ?
जैसे कि पहले ही मैंने आपको बताया कि कस्टमर्स को एक ही एसेट में पैसा नहीं डालना चाहिए। जब हम डाइवर्सिटी की बात करते हैं तो ये एसेट क्लास में भी होनी चाहिए और विद इन एसेट क्लास दूसरे अलग – अलग फंड्स में भी होने चाहिए। समाधान की जो एक नींव है वो ये है कि हमें हर एक प्रोडक्ट में जरूरत के मुताबिक पैसा डालना चाहिए । समाधान हर एक व्यक्ति के लिए अलग हो सकता है। एक तो सोल्युशन हम बना लेते हैं कि ये मेरी बेटी की शादी के लिए है। और दूसरा हमें ये पता नहीं होता कि कितने सामान्य उम्र के लोग हैं जिनके पास अपना खुद का घर है। और आज के युग में जो लड़की की शादी का विषय है वो अब बोझ तो रहा नहीं । क्योंकि हमें नहीं पता कि शादी कैसे होने वाली है ? दहेज चाहिए भी या नहीं तो आजकल समाज में जो परिवर्तन हो रहा है उसकी वजह से गोल्स भी बदल गए हैं । पूरा वातावरण बदल गया है इकॉनमी का। जो सोल्युशन है वह यह है कि हम आपको एक ऐसा प्रोडक्ट देंगे जो हर सोल्युशन में फिट बैठे। हम इस तरह का बुके देंगे या हर केटेगरी के फंड्स देंगे जो हर सोल्युशन में फिट बैठे । सोल्युशन बनाने का काम हम डिस्ट्रीब्यूटर्स पर छोड़ेंगे, क्योंकि वो उनका काम है, हम बी – टू- बी हैं , हम बी – टू – सी नहीं हैं। बी-टू – सी में डायरेक्ट प्लान है जो व्यक्ति आना चाहे मोस्ट वेलकम , परन्तु डायरेक्ट उसी व्यक्ति को आना चाहिए जिसे मार्केट के बारे में या स्कीम्स के बारे में सब पता हो। क्योंकि हम कोशिश करेंगे कि हम सबका मार्गदर्शन कर सकें , परन्तु अगर मैं सच कहूँ तो हमारे पास उतनी शाखाएँ नहीं हैैंं। जैसे स्टेट बैंक के पास २४००० शाखाएं हैं । हमारे पास २०० भी नहीं हैं।
वर्तमान समय में किन – किन चीजों में निवेश करने में बेहतर रिटर्न का वातावरण बना हुआ है ?
म्युचुअल फंड्स के माध्यम से जो पैसा लगाया जाता है , वह आज के दौर में सेक्टर्स स्पेसिफिक न होकर कंपनी स्पेसिफिक हो गया है। म्युचुअल फंड्स में जब भी पैसा लगते हैं, लॉन्ग टर्म के लिए पैसा लगते हैं । ट्रेडिंग माइंड सेट से पैसा नहीं लगाए जाते और जो लोग सकारात्मक तरीके से साथ दे रहे हैं, उनके फण्ड में ज्यादा पैसा लगाया जायेगा ।
भारतीय अर्थव्यवस्था की जो वर्तमान स्थिति है , उस बारे में आप क्या सोचते हैं?
आर्थिक परिस्थितियां और सेंटीमेंटल इकॉनमी ये दो अलग – अलग चीजें हैं। आज की तारीख में आर्थिक परिस्थिति को कुछ नहीं हुआ है । बस जो सेंटीमेंट्स हैं वो खराब हुए हैं ।
आने वाले समय में आपकी मार्केट स्ट्रेटेजी क्या है ?
हमारी स्ट्रेटेजी यही है कि जो हमारे निवेशक हैं उनको एक से ज्यादा प्रोडक्ट कैसे दी जाए और कैसे उनका जुड़ाव बढ़ाया जाये ? जुड़ाव बढ़ाने के लिए एक से ज्यादा चीजें देना जरूरी है । जैसा कि मैंने आपको बताया कि हमारे पास जो इन्वेस्टर्स हैं, वो एक ही एसेट क्लास में हैं , वो ८०% एक ही क्लास में हैं तो अब हमें अपने डिस्ट्रीब्यूटर्स के माध्यम से या मीडिया के माध्यम से की एक ही एसेट क्लास में पैसा नहीं डालना चाहिए । क्योंकि म्युचुअल फंड्स के पास आपके लिए कम्पलीट सोल्युशन है। सेविंग के लिए मनी माकेर्टिंग में फण्ड है, हर एक अवधि के लिए इन्वेस्टमेंट प्लान है, रिस्क क्लास के लिए हमारे पास मॉडरेट भी है, कन्सेवर्टिव भी है और एग्रेसिव भी है। जितना पैसा आप जिस क्लास में रखना चाहते हैं रख सकते हैं, हमारी स्ट्रैटेजी यही है कि छोटे निवेशक के पास जाकर उनका पैसा लिया जाए और उनको सही सोल्युशन दिया जाये और उनकी जरूरतों को पूरा किया जाए ।
एसबीआई म्युचुअल फण्ड की नवीनतम निवेश योजना के बारे में कुछ बताएँ ?
स्कीम्स को तो श्रेणीबद्ध कर दिया गया है अब और नई स्कीम्स के चांस तो बहुत कम हैं। हमारा बुके पूरा कम्पलीट है। पर अब हम ईटीएफ में बहुत बड़ा काम कर रहे हैं ईटीएफ हिंदुस्तान में बहुत कम है और ईटीएफ में हम सबसे बड़े मैनेजर हैं। उसमे हम नए – नए फंड्स लेकर आएंगे।