अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय यानी आइसीजे में अपनी शानदार दलीलों से कुलभूषण जाधव मामले में सफलता के लिए भारतीय लीगल टीम बधाई की पात्र है। इस अदालत ने भारत के पक्ष में 15-1 से फैसला सुनाते हुए इस तर्क से सहमति जताई कि पाकिस्तान ने कुलभूषण को काउंसलर एक्सेस मुहैया न कराकर वियना संधि का घोर उल्लंघन किया। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने पाकिस्तान के इस तर्क को खारिज कर दिया कि जासूसी या आतंकी गतिविधियों में शामिल व्यक्ति को काउंसलर एक्सेस सुविधा नहीं मिलती। ध्यान रहे कि कोई देश किसी दूसरे देश में गिरफ्तार अपने नागरिक की काउंसलर एक्सेस के जरिये ही मदद करता है। यह अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के मूलभूत सिद्धांतों में से एक है। अंतरराष्ट्रीय अदालत ने आदेश दिया कि किसी भी सूरत में काउंसलर एक्सेस से इन्कार नहीं किया जा सकता और न ही इसके लिए कोई शर्त रखी जा सकती है। उसने पाकिस्तान को कुलभूषण की गिरफ्तारी के समय ही भारत को सूचना न देने का भी दोषी ठहराया। पाकिस्तान ने 3 मार्च, २०१६ को कुलभूषण को गिरफ्तार किया, जबकि भारत को इसकी सूचना 25 मार्च को 22 दिन बाद दी गई। वास्तव में कुलभूषण को गिरफ्तार नहीं, बल्कि ईरान से अगवा किया गया था।
चूंकि आइसीजे अंतरराष्ट्रीय कानूनों से बंधा है इसलिए उसने कुलभूषण जाधव मामले से जुड़े तमाम तथ्यों पर गौर नहीं किया। आइसीजे में व्यक्ति नहीं, बल्कि देश ही पक्ष होते हैं। आइसीजे के न्यायाधीश अंतरराष्ट्रीय कानूनों के प्रति समर्पित होने का प्रयास करते हैं ताकि न्यायालय अपने स्वरूप और प्रकृति से न्याय कर सके, मगर जब किसी न्यायाधीश का देश ही किसी मामले में पक्ष बना हो तो वह अक्सर निष्पक्ष रहने के बजाय अपने देश का प्रतिनिधि बनने का मोह नहीं छोड़ पाता। इस मामले में असहमति व्यक्त करने वाले इकलौते पाकिस्तानी अस्थायी न्यायाधीश ने यही किया। वहीं भारतीय न्यायाधीश ने भारतीय न्यायपालिका के उच्च आदर्शो का अनुपालन करते हुए बहुमत का ही साथ दिया जबकि भारत की एक मांग नहीं भी मानी गई। यह मांग कुलभूषण को बरी कर उनकी रिहाई से जुड़ी थी और इसका आधार यह था कि उन्हें काउंसलर एक्सेस सुविधा न देने से उनके उन मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ जिनका उल्लेख अंतरराष्ट्रीय नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार संविदा यानी आइसीसीपीआर में है। अदालत ने कहा कि वियना संधि उल्लंघन के मामले पर विचार करते हुए किसी अन्य अंतरराष्ट्रीय समझौते के प्रावधानों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। ऐसे में फैसला किया गया कि पाक को निर्देश दिया जाए कि वह जाधव को सुनाई गई फांसी की सजा की उचित समीक्षा और पुनर्विचार करे। अब पाकिस्तान को उन्हें अच्छे वकील उपलब्ध कराने होंगे जो अदालत में उनके खिलाफ साक्ष्यों की पडत़ाल कर सकें। पाकिस्तान सैन्य अदालतों के मामले में ऐसी सुविधाएं नहीं देता और कुलभूषण के मामले में भी यही हुआ। पाक को जो करना चाहिए था वह अब काउंसलर एक्सेस के बाद भारत को करना होगा।
यह महत्वपूर्ण है कि आइसीजे ने कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक लगा दी है। उसने पाकिस्तान को निर्देश दिया है कि इस मामले में जब तक प्रभावी समीक्षा और पुनर्विचार की प्रक्रिया पूरी न की जाए तब तक कोई कदम न उठाया जाए। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले के बाद पाकिस्तान अपनी जीत के खोखले दावे इस आधार पर कर रहा है कि कुलभूषण को उसकी हिरासत में रहना होगा। यह दावा एकदम निर्थक है और इसका मकसद सिर्फ पाकिस्तानी जनता को गुमराह करना है ताकि अंतरराष्ट्रीय अदालत में हुई अपनी फजीहत पर पर्दा डाला जा सके जहां उसकी एक दलील नहीं टिकी। उसकी यह कानूनी नाकामी अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह समझाने में नाकाम रही कि पाकिस्तान में आतंक के लिए दोषी भारत है। वास्तव में तथ्य यही है कि पाकिस्तान दुनिया में आतंकवाद का सबसे प्रमुख केंद्र बना हुआ है।
आइसीजे के फैसले पर प्रतिक्रिया में पाकिस्तान ने कहा कि वह अब कानूनी प्रक्रिया का पालन करेगा। हालांकि कानून पालन को लेकर पाकिस्तान के संदिग्ध रवैये के बावजूद इसकी संभावना कम है कि वह काउंसलर एक्सेस उपलब्ध कराने के आइसीजे के आदेश की अवहेलना करेगा। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि क्या काउंसलर एक्सेस मिलने से कुलभूषण से जुड़े मसले का समाधान हो जाएगा और उनकी सुरक्षित भारत वापसी संभव हो सकेगी? अपनी असहमति में पाकिस्तानी न्यायाधीश ने जो कहा उसका इससे सीधा सरोकार है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में कुलभूषण के खिलाफ दो मामले दायर हुए। एक मामला जासूसी और दूसरा आतंकवाद से जुड़ा है। पाकिस्तानी न्यायाधीश के अनुसार पहले मामले में फैसला हो चुका है, क्योंकि पाकिस्तान में कुलभूषण के खिलाफ पर्याप्त सुबूत थे। इस मामले का फैसला सैन्य अदालत ने किया। वहीं आतंकवाद से जुड़े दूसरे मामले में पाकिस्तान ने भारत से कुछ जानकारियां उपलब्ध कराने को कहा है। पाकिस्तान ने पूछा है कि कुलभूषण को फर्जी पासपोर्ट कैसे मिला? इसके अलावा उसने उनके बैंक खाते और फोन कॉल्स का ब्योरा और उनके संगी-साथियों से पूछताछ में मदद मांगी है। इस न्यायाधीश ने दावा किया कि चूंकि भारत ने पाकिस्तान की इस मांग पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो यह मामला आगे ही नहीं बढ़ा। तथ्य कुछ और ही कहानी कहते हैं। पाकिस्तान ने 23 मई, २०१७ को दावा किया कि कुलभूषण के संगी-साथियों की तथाकथित सूची में रॉ के तमाम सेवारत-सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारियों समेत सेवानिवृत्त नौसेना प्रमुख का नाम शामिल था। एफआइआर में शामिल भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का नाम सूची से हटा दिया। यह सूची स्पष्ट रूप से दुष्प्रचार का हिस्सा थी और भारत ने इसे न तो गंभीरता से लिया और न ही कोई प्रतिक्रिया दी। अब यह पूरी तरह पाकिस्तान पर निर्भर करता है कि कुलभूषण को काउंसलर एक्सेस उपलब्ध कराने के बाद उनके खिलाफ जांच में भारत से सहयोग का दोबारा अनुरोध करेगा या नहीं? ऐसा इसलिए, क्योंकि वह इस मामले को लंबा खींचना चाहता है।
भारत का पहला काम यही होना चाहिए कि वह कुलभूषण को पूर्णतः और गोपनीय काउंसलर एक्सेस उपलब्ध कराए ताकि उन्हें यह भरोसा हो सके कि पूरा भारत उनके पीछे खड़ा है। इससे वह उन अत्याचार और जुल्मों का खुलासा कर सकेंगे जो तीन साल की कैद के दौरान पाकिस्तान ने उन पर ढाए। इसके साथ ही भारत को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि पाकिस्तानी अदालतें उनके मामले में प्रभावी समीक्षा और पुनर्विचार करें जो पहले ही उन्हें मौत की सजा सुना चुकी है। पाकिस्तान को बेनकाब करना होगा, भले ही इसके लिए कानून ही क्यों न बनाना पड़े। कुछ ऐसा करना होगा कि वह अपने किए पर शर्मिदा हो। इसके साथ ही भारत को कुलभूषण के खिलाफ आतंकवाद के मामले की हवा निकालने की पुख्ता रणनीति बनानी होगी। पाकिस्तान के छल-कपट और षड्यंत्र की परतें खोलने के लिए भी ठोस योजना की दरकार होगी। भारत को कुलभूषण को बचाने के लिए मेहनत करने के साथ ही धैर्य भी रखना होगा। इसमें त्वरित परिणाम की अपेक्षा उचित नहीं होगी, क्योंकि सामने पाकिस्तान जैसा अड़यिल, नादान और नकारात्मक सोच वाला मुल्क है।