एकदिवसीय क्रिकेट विश्व कप का 12वां संस्करण इंग्लैंड के नाम दर्ज किया जाएगा। लेकिन जिन्होंने इस टूर्नामेंट का फाइनल मैच अंतिम गेंद तक लाइव देखा हो, वे तस्दीक करेंगे कि इस स्तर के रोमांच से किसी टीम की नहीं, क्रिकेट के वनडे फॉर्मेट की जीत हुई है। एक दिन में १०२ ओवर फेंका जाना खुद में इस खेल के लिए गुजरे जमाने वाली बात है, लेकिन हद यह कि मैच इतना लंबा खिंचने के बावजूद इसका फैसला नियमों की किताब देखकर करना पड़ा। इसकी तुलना इसी शाम लॉड्र्स मैदान से महज 6 मील की दूरी पर रॉजर फेडरर और नोवाक जोकोविच के बीच हुए विंबलडन फाइनल से ही की जा सकती है, जहां 4 घंटा मिनट चला दो महारथियों के बीच टेनिस का सबसे लंबा मुकाबला खत्म होने को ही नहीं आ रहा था।
इतने सारे फॉर्मेट मौत का मुहावरा क्रिकेट के साथ काफी पहले से जुड़ा है। पहले इसे टेस्ट क्रिकेट के लिए इस्तेमाल किया गया, फिर वनडे के साथ। अभी तो क्रिकेट के मर जाने की भविष्यवाणी कोई भी खेल मर्मज्ञ कभी भी कर देता है। शुरू में इस खेल के साथ दिनों की कोई सीमा नहीं जुड़ी थी, लेकिन बड़े जमींदारों के उस खेल में गेंद पकड़ कर लाने का काम नौकर-चाकर किया करते थे। फिर इसके लिए छह दिन का वक्त मुकर्रर किया गया। पांच दिन खेल के और बीच में एक दिन छुट्टी का। कमेंट्री के लिए रेडियो खोलने और संबंधित स्टेशन पर फिल्मी गाने बजते रहने की हतक मैंने बचपन में झेली है। पूछने पर गांव का कोई ज्ञानी बताता था कि आज रेस्ट है। लोग मजाक करते थे कि अमेरिकियों से क्रिकेट खेलने को कहा गया तो वे बोले कि खेलने या खेल देखने के लिए इतना वक्त यहां किसके पास है/ आधा-एक घंटे में काम निपट जाए तो खेलना शुरू कर दें!
कुल छह देशों के आपसी दौरों की शक्ल में रचे-बसे टेस्ट क्रिकेट के मरने की अफवाह सत्तर के दशक में टीवी के प्राइवेट स्पोट्र्स चैनलों का धंधा शुरू होने के साथ ही उठने लगी तो आईसीसी ने इसका वनडे फॉर्मेट बनाकर चार-साला विश्व कप का सिलसिला शुरू किया। दोनों तरफ साठ-साठ ओवर के मैच, जिन्हें कराने का ढांचा भी काफी समय तक इंग्लैंड के अलावा किसी और देश में नहीं बन पाया था। बाद में खेल को सौ ओवरों तक सीमित किया गया और नियमों में लगातार ऐसे बदलाव किए गए, जो गेंदबाजों के खिलाफ और बल्लेबाजों के पक्ष में गए।
इसके पीछे तर्क यह था कि दर्शक मैदान में चौके-छक्के देखना चाहते हैं, 25 ओवर में तीन विकेट पर ५० रन देखकर वे जम्हाई लेते हुए घर का रास्ता पकड़ लेते हैं। गजब बात कि तब कहीं से यह जवाबी दलील नहीं सुनने को मिली कि इस हिसाब से फुटबॉल वर्ल्ड कप के हर मैच में ३० – ४० गोल तो पडऩे ही चाहिए!
बहरहाल, लगभग हर विश्व कप से पहले किए जाने वाले तमाम नए बदलावों के बावजूद मृत्यु के तर्क ने क्रिकेट का पीछा नहीं छोड़ा और भारत में २०-२० ओवरों की एक प्राइवेट क्रिकेट लीग को अच्छी कमाई करते देख आईसीसी ने २००७ में अचानक इस तीसरे फॉर्मेट का विश्व कप शुरू करने की घोषणा कर दी, जिसकी तब कई देशों में कोई घरेलू टीम तक नहीं थी। तब से अब तक क्रिकेट के दो विश्व कप खेले जाते रहे हैं। एक वनडे फॉर्मेट का, दूसरा टी-२० फॉर्मेट का। इन दोनों के अलावा टेस्ट मैचों की विश्व चैंपियनशिप भी इसी साल से शुरू होने वाली है, जिसका फाइनल २०२१ में इंग्लैंड में खेला जाएगा। खेल के इतने फॉर्मेट दुनिया ने शतरंज में ही देखे हैं।
क्रिकेट इतिहास के सबसे भरोसेमंद बल्लेबाजों में एक राहुल द्रविड़ ने २०११ में ऑस्ट्रेलिया में दिए गए अपने सर डॉनल्ड ब्रैडमन ओरेशन में साफ कहा था कि लोग-बाग स्टेडियम में टेस्ट मैच देखने जाते हैं क्रिकेटरों का धीरज परखने के लिए, जबकि टी-२० मैच वे उससे जुड़े रोमांच का हिस्सेदार बनने के लिए देखते हैं। एक फुल फॉर्मेट और एक लिमिटेड ओवर फॉर्मेट। बीच में वनडे क्रिकेट के लिए जगह कहां बनती है, इसका फैसला समय करेगा। इसी के अनुरूप द्रविड़ ने सुझाव दिया था कि टेस्ट मैच छोटे-मंझोले शहरों में आयोजित किए जाने चाहिए, जहां लोगों के पास चार-पांच दिन स्टेडियम में बैठने की फुर्सत होती है, जबकि लिमिटेड ओवर क्रिकेट को महानगरों के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए। इसमें भी उनकी राय थी कि सीमित ओवर के फॉर्मेट अगर दो ही रखने हों तो इनमें वर्ल्ड कप या इंटरनेशनल सीरीज सिर्फ एक में कराई जानी चाहिए। द्रविड़ का सुझाव था कि टी-२० को अगर क्लब क्रिकेट तक सीमित रखा जाए तो वनडे फॉर्मेट की जिंदगी लंबी हो जाएगी। बहरहाल, अभी टीमों के विदेशी दौरों में दोनों फॉर्मेट के लिमिटेड ओवर मैच कराए जाते हैं, जिनमें आमदनी ज्यादा टी-२० मैचों से होती है।
आधा तीतर आधा बटेर
इस विश्व कप के फाइनल का संदेश स्पष्ट है कि क्रिकेट को फुटबॉल या हॉकी के साथ कन्फ्यूज नहीं किया जाना चाहिए। यह कन्फ्यूजन अभी सबसे ज्यादा भारतीय टीम में जाहिर हो रहा है, जिसके पास किसी ठीक-ठाक टार्गेट का पीछा करते हुए पूरे ५० ओवर खेल लेने वाला कोई बैटिंग कॉम्बिनेशन काफी लंबे समय से नहीं बन पाया है। बल्लेबाजों की बेसिक ट्रेनिंग टी-२० की है लिहाजा वे अनुकूल परिस्थितियों में बहुत अच्छा खेलते हैं, सामने वाली टीम को अक्सर टार्गेट भी काफी ऊंचा देते हैं, लेकिन नॉकआउट मैचों में उनका दम जल्दी फूल जाता है और सेमीफाइनल वे कभी विरले ही पार कर पाते हैं। जैसे लक्षण हैं, क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट अगले दस साल तक कहीं नहीं जाने वाले। लेकिन क्रिकेटरों के धीरज और जोश, दोनों का असल इम्तहान बीच वाले यानी वनडे फॉर्मेट में ही होना है, जिसकी विशेषज्ञता आधा तीतर आधा बटेर वाले मौजूदा रवैये से नहीं हासिल की जा सकती।