कर्मयोगी स्व० धीरूभाई अम्बानी

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संस्थापक – अध्यक्ष, रिलांयस इण्डस्ट्रीज लिमिटेड

किशोरावस्था में स्व.धीरूभाई अम्बानी अनंत की ऊचाइयाँ छूने के लिए मचल उठे और इस क्रम में उन्होंने विदेशी धरती पर अपने पाँव रखे। देश स्वतंत्र हो चुका था और स्वतंत्रता के रथ पर सवार होकर भारत के भविष्य का महारथी निकल पड़ा अपने महाभियान पर।

परमात्मा की लीला विचित्र होती है और कभी-कभी तो परम विचित्र होती है। वह किसको निमित्त बनाकर क्या करना चाहता है, यह वही जाने । उसकी लीला अपरम्पार है । हाँ, इतना अवश्य है कि वह अपनी लीलाओं को बिल्कुल सुपात्र और सुयोग्य विभूतियों के माध्यम से सम्पन्न कराता है और उस विभूति के व्यक्तित्व में स्वयं का ही विशिष्ट प्रकाश प्रदान कर लोकहित सिद्ध करता है, अपनी महती अनुकम्पा प्रदान कर महान विभूति के माध्यम से महान कार्य सम्पन्न कराता है। परमात्मा सामान्य से दिखने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व में विशिष्ट गुणों, विचारों एवं परम पुरुषार्थ की उदात्त भावना व शक्ति का संचार कर उन्हें युग-पुरुष के रूप में स्थापित करता है, जिससे युग प्रेरणा प्राप्त करता है । कर्म की गति बहुत गहन होती है । ईमानदारी, सच्ची लगन, निष्ठा और उत्कट पुरुषार्थ को धारण कर यदि पूर्ण मनोयोग से जीवन में कोई भी कार्य किया जाय तो संसार में कुछ भी असंभव नहीं है । अर्थात्‌ – वह सब कुछ सहज संभव है जिसे मनुष्य प्राप्त करना चाहता है, वह अपने लक्ष्य को अवश्य ही प्राप्त कर सकता है। ऐसे कर्मयोगी व्यक्तित्व स्वयं का गगनोन्नत उत्थान तो करते ही हैं, साथ ही साथ समाज, राष्ट्र व संसार की प्रगति व उत्थान में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, वे हमारे पथ प्रदर्शक बन जाते हैं, प्रेरणा स्रोत बन जाते हैं। ऐसे ही कर्मयोगी थे स्व० श्री धीरूभाई अम्बानी जी जो एक साधारण व्यक्ति के स्तर से ऊपर उठकर अंतरराष्ट्रीय
औद्योगिक जगत की महान हस्ती बन गये । श्रीमद्‌भगद्‌गीता के सार तत्व को अपने जीवन आचरण में उतार कर इस कर्ययोगी ने वैश्विक औद्योगिक जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई और व्यापक पैमाने पर बहुविधि समाज व राष्ट्र की महान सेवा की । स्व० धीरूभाई अम्बानी के ज्येष्ठ पुत्र मुकेश अम्बानी भी अपने पिता की ही भाँति कर्मठता की साक्षात्‌ प्रतिमूर्ति प्रतीत होते हैं। स्व० धीरूभाई अम्बानी ने उद्योग का विशाल साम्राज्य स्थापित किया तो आपके सुयेाग्य व कर्मठ पुत्र मुकेश भाई अम्बानी ने विश्व विजयी महान सिकंदर की भांति पिता द्वारा स्थापित औद्योगिक साम्राज्य को और अधिक ऊंचाई प्रदान किया, राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और अधिक विस्तार दिया । संसार के १३ वें सर्वाधिक अमीर व्यक्ति और भारत के सबसे अमीर व्यक्ति, भारतीय उद्योगपतियों के शहंशाह श्री मुकेश अम्बानी रिलायंस इण्डस्ट्रीज के संस्थापक स्व०धीरूभाई अम्बानी के कर्मयोग की तपस्या से उद्‌भूत महान सफलता और सुयश को सतत्‌ अग्रसर किये हुए हैं।
कर्मयोगी स्व० श्री धीरूभाई अम्बानी की प्रेरणाप्रदायी यशस्वी जीवनयात्रा का संक्षिप्त वृतान्त प्रस्तुत करना अत्यावश्यक है।
सिंधी वंश भारत का एक धार्मिक- सामाजिक जातीय समूह है
सिंध की पावन धरती से अम्बानी परिवार के श्रेष्ठ पुरुष का गुजरात की तपोभूमि पर हुआ पदार्पण अम्बानी परिवार के लिए ही नहीं अपितु भारत और सम्पूर्ण विश्व के लिए सुफलदायी सिद्ध हुआ । वर्तमान का सिंध जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है भारत विभाजन के पूर्व वह अखण्ड भारत का अभिन्न अंग था, वह देश का उत्तर-पश्चिमी प्रांत था । सिंधी वंश भारत का एक धार्मिक- सामाजिक जातीय समूह है जिसका व्यापार, शिक्षा एवं देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान है । सिंध से गोर्धन भाई अम्बानी का परिवार आज के गुजरात प्रांत के जूनागढ़ के चोरवाड़ में आकर बस गया । गोर्धन भाई सिंधी समुदाय की एक जाति मोधबनियां वंश के थे । वैश्विक औद्योगिक जगत में आप को बेतहासा सफलता व सुयश प्राप्त हुआ । स्व. धीरूभाई अम्बानी ने अपनी मेधा शक्ति, दूरदर्शिता, पुरुषार्थ, लगन,कर्मठता एवं व्यावसायिक कार्य कुशलता से सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित किया और आज आप द्वारा बीजारोपित औद्योगिक प्रतिष्ठान रिलायंस इन्डस्ट्रीज लिमिटेड महावट वृक्ष बनकर सम्पूर्ण विश्व को आच्छादित किये हुए है।
धन-कुबेर बनने की पृष्ठभूमि
छोटे से बीज में बहुत बड़ा आकार छिपा होता है। बालक के रूप में ही धीरूभाई अम्बानी ने अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दे दिया था, उन्होंने अपने क्रिया-कलापों से सिद्ध कर दिया था कि वे बालक नहीं हैैं बल्कि भविष्य के औद्योगिक पितामह हैं, उद्योगाधिपति हैं। जिस उम्र में बालकों के अंदर खेलने-कूदने, मौज मस्ती करने की भावना, रुचि व इच्छा होती है, उस उम्र में धीरूभाई अम्बानी से ईश्वर ने उनके धन-कुबेर बनने की पृष्ठभूमि में व्यावसायिक श्रीगणेश करवाया । किशोरावस्था में ही धीरूभाई ने व्यवसाय की शुरूआत कर दी । वे सप्ताह के अंत में (शनिवार-रविवार को) गिरनार की पहाडिय़ों पर तीर्थयात्रियों को पकौड़े खिलाकर (बेचकर) धार्मिक, आर्थिक लाभ कमाने लगे। परमात्मा ने बाल्यकाल में ही धीरूभाई अम्बानी से पर्याप्त तपस्या करा ली थी। महान विभूतियों के जीवन में कुछ ऐसी ही घटनाएं होती हैं जो प्रायः सर्व सामान्य के जीवन में नहीीं होतीं। इसीलिए बाल्यकाल में ही धीरूभाई अम्बानी का शुरू हुआ तपस्यापूर्ण व्यावसायिक सफर आगे उद्योगाधिपति के रूप में उन्हें प्रतिष्ठापित करने का आधार सिद्ध हुआ ।

सच्ची लगन, परिश्रम और कर्तव्यनिष्ठा
किशोरावस्था में स्व.धीरूभाई अम्बानी अनंत की ऊचाइयाँ छूने के लिए मचल उठे और इस क्रम में उन्होंने विदेशी धरती पर अपने पाँव रखे । देश स्वतंत्र हो चुका था और स्वतंत्रता के रथ पर सवार होकर भारत के भविष्य का महारथी निकल पड़ा अपने महाभियान पर। भारत को स्वतंत्रता मिलने के एक वर्ष पश्चात्‌ अर्थात्‌ सन्‌ १९४८ में मात्र १६ वर्ष की उम्र में धनोपार्जन की इच्छा से धीरूभाई यमन गये। यमन में धीरूभाई ने ए. बेस्सी एण्ड कम्पनी र्(ीं ोँेग्र् ीह्‌ ण्दर्स्ज्ीहब्) में उस समय तीन सौ रूपये मासिक वेतन पर कार्य शुरू किया। सच्ची लगन, परिश्रम और कर्तव्यनिष्ठा के परिणामस्वरूप मात्र दो वर्ष की अवधि के अन्दर ही ए. बेस्सी एण्ड कम्पनी शेल (ेपत्त्) उत्पादन के वितरक के रूप में नियुक्त हुए और एडडन के बंदरगाह के एक फिलिंग स्टेशन के मैनेजर के रूप में पदोन्नत हुए । श्री धीरूभाई अम्बानी ने अपने महाभियान का प्रथम चरण बहुत ही कुशलता पूर्वक पूर्ण किया और आत्मविश्वास से परिपूर्ण उनका व्यक्तित्व चमत्कृत हो उठा।

धीरूभाई को स्वयं पर, अपने-सपनों पर और उन सपनों के साकार होने पर पूरा भरोसा था
लक्ष्मी स्वरूपा कोकिलाबेन जी के साथ आपका शुभ विवाह भी अत्यंत शुभदायी व शौभाग्यशाली सिद्ध हुआ। विवाह के पश्चात्‌ आप लगभग यमन में ही रहने लगे । २४ वर्ष की उम्र में मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त श्री धीरूभाई बर्मा शैल प्रोडक्ट कम्पनी के जनरल मार्केटिंग मैनेजर बन गये। अपनी कर्तव्यपरायणता एवं अद्वितीय प्रतिभा के बल पर धीरूभाई यह महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किये । बर्माशेल कम्पनी के यहूदी मालिक ने सबसे पहले उनकी विलक्षण प्रतिभा को पहचाना और अपनी कम्पनी की प्रगति के लिए, उस विलक्षण प्रतिभा के प्रयोग के लिए उच्च पद प्रदान किया । धीरूभाई की प्रखर प्रतिभा को तो यहूदी कम्पनी मालिक ने पहचाना किन्तु उस विलक्षण प्रतिभा सम्पन श्रेष्ठ मानव की भावी योजनाओं, सपनों को नहीं पहचान पाया और न यही पहचान सका कि श्री धीरूभाई किसी के नौकर नहीं बल्कि मालिक बनने के लिए पैदा हुए थे ।
धीरूभाई को स्वयं पर, अपने-सपनों पर और उन सपनों के साकार होने पर पूरा भरोसा था । आपकी जगह यदि दूसरा कोई व्यक्ति होता तो शायद वह कम्पनी द्वारा प्रदान किये गये उच्च पद और सुविधा सम्पन्न जीवन के व्यामोह का त्याग नहीं कर पाता । इसीलिए सन्‌ १९५९ मेें जब धीरूभाई ने कम्पनी से इस्तीफा देकर भारत आने का निर्णय लिया तो किसी को विश्वास ही नहीं हुआ । धीरूभाई को किसी को विश्वास दिलाने की आवश्यकता ही नहीं थी क्योंकि उन्हें स्वयं पर पूर्ण विश्वास था । उनका स्वयं पर पूर्ण विश्वास होना ही उन्हें साधारण मानव से अलग सिद्ध करने के लिए काफी था । धीरूभाई के व्यक्तित्व में आत्म विश्वास और सर्वथा उचित समय पर निर्यण लेने की विलक्षण क्षमता कूट-कूट कर भरी हुई थी, उन्होंने समय-समय पर अपने जीवन के महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी निर्णयों से यह सिद्ध कर दिया था ।
अल्प पूँजी से आपने रिलायंस कामर्शियल कॉरपोरेशन की नींव रखी
भारत की धरती पर अपना व्यावसायिक साम्राज्य खड़ा करने के क्रम में धीरूभाई अम्बानी ने स्वयं का व्यवसाय शुरू करने का निर्णय किया । सन १९५९ में २५ वर्षीय धीरूभाई अम्बानी पत्नी और बच्चे सहित भारत वापस आ गये । मात्र कुछ रूपये की अल्प पूँजी से आपने रिलायंस कामर्शियल कॉरपोरेशन की नींव रखी और उसके माध्यम से अदरक, हल्दी, इलायची तथा कपड़ोें का निर्यात शुरू किया । इसके अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु की मांग होने पर उसका भी निर्यात किया जाता था । उस समय शायद किसी को भी अनुमान नहीं रहा होगा कि कमोडिटी ट्रेडिंग और एक्सपोर्ट हाउस जैसे इस कार्य से शुरूआत करने वाला कभी संसार का धनकुबेर बन जायेगा । लघुता में ही गुरुता होती है। छोटे पैमाने पर शुरू हुआ रिलायंस कॉमर्शियल कॉरपोरेशन का निर्यात व्यवसाय धीरूभाई के सुयोग्य नेतृत्व में फलने-फूलने लगा और अन्ततः सुफलदायी सिद्ध हुआ।
एक बेहद महत्वाकाँक्षी परियोजना
धीरूभाई अम्बानी आत्म विश्वास, उमंग और उत्साह से परिपूर्ण एक दूरदर्शी व्यक्तित्व के स्वामी थे। इसीलिए उन्होंने अपने व्यावसायिक यात्रा के अगले चरण के शुभारंभ के लिए गुजरात की पावन भूमि को चुना, जो उनके दृष्टिकोण से पूर्णतया अनुकूल था। अपनी व्यावसायिक कामयाबी से उत्साहित धीरूभाई ने सन्‌ १९६६ में अपनी प्रबल महत्वाकांक्षी योजना को मूर्तरूप दिया मात्र १५,००० की पूंजी के बल पर अहमदाबाद के नरोदा में कपड़ा मिल की स्थापना करके । इसके बाद तो उन पर भगवान की असीम कृपा हुई और फिर उन्होंने कभी पीछे मुडव़र नहीं देखा, नित-नई बुलदियों को छूने लगे । एक के बाद एक योजनाएं सफल होती गर्इं और धीरूभाई ने रिलायंस नाम को न केवल भारत अपितु सम्पूर्ण विश्व में सुप्रसिद्ध कर दिया । आत्मविश्वासी, साहसी एवं कर्मठ व्यक्ति के लिए ईश्वर की कृपा से क्या नहीं संभव हो जाता है। ईश्वर की कृपा से श्री धीरूभाई अम्बानी की योग्यता – पात्रता और योजनाओं को चमत्कारी पंख मिल गये और अनंत की उड़ान भरने के लिए तैयार हो गये।
युग पर अमिट छाप
आपके साहस, समर्पण,दूरदर्शिता, त्याग, लगन और संघर्ष का यहाँ वर्णन कर पाना संभव नहीं है। इतना ही कहा जा सकता है कि धीरूभाई अम्बानी भगवान द्वारा प्रदत्त इस संसार को अनुपम उपहार थे, जिन्होंने युग पर एक गहरी छाप छोड़ी । युग पर उन्हीं महापुरुषों का अमिट प्रभाव रहता है, जो अपनी जीवन यात्रा में संसार को दिशा-दिखाते हैं, समाज-देश, विश्व का उद्धार करते हैं और निःस्वार्थ भाव से सबकी सेवा करते हुए अपने जीवन के उद्देश्यों को पूर्ण कर मानवता के लिए अमर संदेश प्रदान करते हैं।

संसार से विदा हुए
अपनी जीवन लीला पूर्ण करके प्रत्येक प्राणी को संसार से विदा लेना पडत़ा है। इसी शाश्वत सत्य की स्थापित अनादि कालीन परम्परा के अनुसार धीरूभाई अम्बानी की जीवन यात्रा पूर्ण होने को आई। धीरज लाल हीराचंद अम्बानी (धीरूभाई) ६ जुलाई, २००२ को ६९ की आयु में ब्रीच केंडी अस्पताल में मध्यरात्रि ११.५० बजे ब्रम्हलीन हो गये । अपनी विलक्षण प्रतिभा से सम्पूर्ण विश्व को चमत्कृत व आश्चर्य चकित कर देने वाले औद्योगिक जगत के बादशाह आज हम सबके लिए प्रेरणा के स्रोत हैं, हम सब के पथ प्रदर्थक हैं। धीरूभाई अम्बानी जैसे विलक्षण व्यक्तित्व के धनी युगोें-युगोें में कभी एकाध बार ही पैदा होते हैैं। श्री धीरूभाई पर राष्ट्र और विश्व को गर्व है। महाप्राण को कोटिशः नमन्‌! हार्दिक आदरांंजलि, श्रद्धांजलि, पुष्पांजलि!

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