राष्ट्रकुल संसदीय मंडल, महाराष्ट्र शाखा के दिसंबर २००७ के नागपुर सत्र में दोपहर के बाद होने वाले राजनेताओं और अधिकारियों के ऊबाऊ किंतु बेहद ज्ञानवर्धक व्याख्यानों से हम सभी थक चुके थे। तभी ५ वें दिन संयोजक अधिकारी मदाने ने बताया कि आज के दोपहर बाद वाले सत्र में एक युवा आमदार का व्याख्यान होगा। हम सभी राजनीति शास्त्र के विद्यार्थी थे और मेरा सक्रिय राजनीति की ओर रुझान होने के कारण युवा आमदार से बात करने की इच्छा बलवती हो गई। समय पर सभी १-१७ लोग छोटे से कक्ष में बैठे थे। तभी मदाने साहब के साथ एक स्मित मुस्कान वाले व्यक्ति का आगमन होता है। चेहरे पर आत्मविश्वास और स्नेह की चमक सभी को बरबस जोड़ रही थी। तब उनका परिचय महाराष्ट्र विधानसभा के आमदार, नागपुर के पूर्व महापौर और लॉ ग्रेजुएट के रूप में कराया गया। उनका व्याख्यान संसदीय राजनीति में युवाओं की भूमिका पर हुआ। लगभग एक घंटे के व्याख्यान रिसर्च, रोचकता, तारतम्यता और हास्य से भरपूर रहा। सभी शिक्षक और विद्यार्थी दोपहर के भोजन के बाद भी पूरी रुचि और ऊर्जा से उन्हें सुन रहे थे। उसके बाद प्रनोत्तर भी हुए जिसका उत्तर उन्होंने बड़े धैर्य और विद्वतापूर्ण तरीके से दिया। मैंने एक प्रश्न पूछा था, क्या अलग विदर्भ वहां की समस्याओं का उत्तर है, जिसका सीधा और सटीक उत्तर था हाँ। साथ ही उन्होंने कहा, विदर्भ का विकास हो जाने से ये मांग पीछे भी ली जा सकती है। हमारा उद्देश्य अलग विदर्भ से बकर वहां का विकास है। सत्र समाप्ति के पश्चात उन्होंने सभी सहभागियों और शिक्षकों से उनका परिचय लिया। इस तरह देवेंद्र फडणवीस के बहुआयामी व्यक्तित्व से मेरा पहला परिचय हुआ। सभी ने एक स्वर में कहा ये आगे चलकर देश के बड़े नेता बनेंगे। तब से ही उनकी प्रतिभा का कायल रहा हूँ। देवेंद्र फडणवीस से दूसरी मुलाकात २०११ में मुंबई में हुई। मुंबई यूनिवर्सिटी के सभागÀह में चुनाव सुधारों पर विमर्श का आयोजन हुआ था। उस वव़त चुनाव सुधारों पर राष्ट्रीय स्तर पर वीरप्पा मोइली जी की समिति रायशुमारी कर रही थी। मुझे भी राजनीति शास्त्र का प्राध्यापक होने के नाते बुलाया गया था। मंच पर देवेंद्र फडणवीस को देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। उनका संवैधानिक विषयों पर गू और गहन अध्ययन है। वहां उन्होंने चुनाव सुधार, संसदीय व्यवस्था, राजनीति से अपराधीकरण खत्म करने तथा निष्पक्ष चुनाव के सुधारों पर बेहद प्रभावशाली व्याख्यान दिया। लंच के समय मैंने देखा वे सभी के साथ लाइन में खड़े होकर अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे। उनसे मिलने और बात करने के लोभ में मैं लाइन तोड़कर उनके पास गया और नागपुर में हुई मुलाकात याद दिलाई। बड़े आत्मीयता से उन्होंने मेरे वर्तमान कार्य के बारे में पूछा और शुभकामनाएं दी। इस वाकिये को दोहराने के पीछे की मंशा देवेंद्र फडणवीस की उदारता, गू ज्ञान और एक राजनेता का सामाजिक सरोकार पाठकों से साझा करना था। पॉलिटिशियन बनना आसान है लेकिन स्टे्टसमैन बनना मुश्किल यात्रा है। देवेंद्र फडणवीस ने यह यात्रा बखूबी तय की है। यही राय उन्हें जानने वाले हर भारतीय की है।
१९७० में जन्मे दवेंद्र फडणवीस को संघ के संस्कार और राष्ट्रप्रेम की भावना अपने परिवार से विरासत में मिली है। घर में अटल बिहारी वाजपयी जैसे बड़े नेताओं का आना जाना बना रहता था, जिससे बचपन से ही राजनीति और सामाजिक कार्यों की घुट्टी मिलती रही। संघ की शाखा से लेकर विद्यार्थी परिषद् तक उनकी यात्रा ने उनके बड़े नेता बनने के संकेत दे दिए थे। जमीनी राजनीति से शुरुआत करके, विभिन्न पदों पर काम किया और आज महाराष्ट्र के अग्रणी नेताओं में से एक हैं। आगे चलकर वे भारतीय जनता पार्टी के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष बने। ये जिम्मेदारी उन्हें उस समय के प्रदेश अध्यक्ष नितिन गडकरी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये जाने के बाद दी गयी। उन्होंने भाजपा को शहरी और ग्रामीण दोनों भागों में समान रूप से मजबूत किया। २०१४ में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शिव सेना से गठबंधन तोड़ कर अकेले दम पर चुनाव लड़ा। भाजपा को १२५ सीटों पर जीत मिली। इस जीत का श्रेय देवेंद्र फडणवीस को देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने उन्हें महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया। उनके सामने कई और बड़े नेता दौड़ में शामिल थे। लेकिन पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की दृष्टि में वही सबसे योग्य उम्मीदवार साबित हुए। अपने ५ साल के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में देवेंद्र फडणवीस ने निर्भीक होकर सरकार चलाई। शिव सेना से तालमेल बैठाते हुए राज्य के विकास के लिये बड़े निर्णय लिए। किसानों के लिए अलग से अनुदान, युवाओं के किये कौशल विकास और रोजगार के अवसर बाये, हर उपेक्षित और पिछड़े समाज के लिए अलग से योजनाएं बनायीं, अनुदान दिया। मराठा आंदोलन की मांगों को पूरा सम्मान देते हुए उनके लिए विधानसभा में आरक्षण कानून पास करवाया। सूखे से निबटने और किसानों के खेत में पानी उपलब्ध करवाने के लिए जलयुक्त शिवार योजना के माध्यम से लाखों सूखे पड़े जल स्रोतों, कुओं, नहरों, तालाबों को पुनर्जीवित किया। प्रशासन में डिजिटल क्रांति के माध्यम से किये गए बदलाव से आम जनता के लिए प्रशासन तक पहुँचना और अपना काम घर बैठे करवाना संभव हो सका है। इस प्रकार देवेंद्र फडणवीस सरकार द्वारा किये गए हर काम और निर्णय सीधे जनता तक पहुंचे। विचौलियों और प्रशासनिक भ्रष्टाचार पर कठोर लगाम लगाने में सफल होने वाले मुख्यमंत्रिओं में उनका नाम शुमार है।
२०१९ में भाजपा ने शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। बीजेपी और उसके सहयोगियों ने १६४ सीटों पर तो शिव सेना ने १२४ सीटों पर चुनाव लड़ा। बीजेपी को सबसे ज्यादा १०५ सीटें मिली। लेकिन मुख्यमंत्री पद पाने की जिद को लेकर शिव सेना ने कांग्रेस और राकांपा से गठबंधन कर लिया। इस प्रकार एक जीते हुए सरदार को छल से सत्ता से वंचित रखा। लेकिन पार्टी ने उन्हें विपक्ष का नेता बनाया। विपक्ष के नेता के रूप में उन्हाेंने अकेले ही सरकार को घर रखा है। उद्धव ठाकरे सरकार के दो मंत्रियों को इस्तीफ़ा भी देना पड़ा। सदन के अंदर और बाहर अकेले देवेंद्र फडणवीस ही तीन पार्टियों की सरकार पर भारी पड़ते हैं। इसकी वजह है उनका हर विषय पर गू़ढ अभ्यास और उसे रखने की प्रभावी शैली। बिना लाग लपेट के अपनी बात रखना उनकी विशेषता है। हर वर्ग के व्यक्ति से आसानी से जुड़ जाना और सभी को अपने पास सहज महसूस करवाना उन्हें आज के ताम झाम वाले नेताओं से अलग रखता है।
यह सब उन्होंने ५० साल की कम उम्र में ही हासिल कर लिया है। आगे उन्हें देश के प्रभावी और दूरदर्शी नेतÀव्त के रूप में बड़ी भूमिकाएं निभाते हुए सारा देश देखना चाहता है। क्योंकि देवेंद्र फडणवीस युवाओं के लिए वह उम्मीद हैं जो अपने प्रशंसकों और आलोचकों को सहज प्रेम और मुस्कान के साथ उत्तर देते हैं। जो अपने समर्थकों और विरोधियों को उनकी पहचान से नहीं उनके गुणों से परखते हैं। जो हर आलोचना का जवाब अपने काम और परिणाम से देना
जानते हैं। देश को ऐसे राजनेताओं की बहुत जरूरत है।