राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने असम में आयोजित एक कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा कि सीएए और एनआरसी का हिंदू-मुसलमान विभाजन से कोई लेना-देना नहीं है। साथ ही, उन्होंने दावा किया कि कुछ लोग अपने राजनीतिक हित साधने के लिए इसे साम्प्रदायिक रंग दे रहे हैं।
असम के दो दिवसीय दौरे पर आए भागवत ने जोर देते हुए यह भी कहा कि नागरिकता कानून से किसी मुसलमान को कोई नुकसान नहीं होगा। भागवत ने सिटिजनशिप डिबेट ओवर एनआरसी ऐंड सीएए-असम एंड द पॉलिटिक्स ऑफ हिस्ट्री (एनआरसी और सीसीएए-असम पर नागरिकता को लेकर बहस और इतिहास की राजनीति) शीर्षक वाली पुस्तक के विमोचन के बाद कहा, ”स्वतंत्रता के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री ने कहा था कि अल्पसंख्यकों का ध्यान रखा जाएगा और अब तक ऐसा ही किया गया है। हम ऐसा करना जारी रखेंगे। सीएए के कारण किसी मुसलमान को कोई नुकसान नहीं होगा।ह्ण भागवत ने रेखांकित किया कि नागरिकता कानून पड़ोसी देशों में उत्पीड़ित हुए अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करेगा। उन्होंने कहा, हम आपदा के समय इन देशों में बहुसंख्यक समुदायों की भी मदद करते हैं। इसलिए अगर कुछ ऐसे लोग हैं, जो खतरों और भय के कारण हमारे देश में आना चाहते हैं, तो हमें निश्चित रूप से उनकी मदद करनी होगी। भागवत ने दावा किया कि भारत को नेताओं के एक समूह ने स्वतंत्रता सेनानियों और आम लोगों की सहमति लिये बगैर विभाजित कर दिया तथा कई लोगों के सपने बिखर गये। उन्होंने कहा, देश के विभाजन के बाद भारत ने अल्पसंख्यकों की चिंताओं को सफलतापूर्वक दूर किया लेकिन पाकिस्तान ने नहीं। उन्होंने हजारों उत्पीड़ित हिंदुओं, सिखों और जैन परिवारों को घरबार छोड़ने तथा भारत में आने को मजबूर किया। सीएए उन शरणार्थियों की मदद करता है, इसका भारतीय मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने एनआरसी के बारे में कहा कि सभी देशों को यह जानने का अधिकार है कि उनके नागरिक कौन हैं।