तारीख तो ठीक से याद नहीं, मगर शायद २०१८ की बात है। देश के एक बड़े टीवी चैनल का मुंबई मंथन नाम से कार्यक्रम चल रहा था, जिसमें मौजूद एंकर सामने बैठे भाजपा के नेता से लगातार तीखे सवाल कर रही थीं और उन सवालों के जवाब भी बड़ी कुशलता से दिए जा रहे थे। इसी क्रम में योगी सरकार द्वारा इलाहबाद को प्रयागराज किए जाने को लेकर एक सवाल आया कि, बीजेपी की सरकार में क्या शहरों के नाम सेफ हैं? इस पर मौजूद नेता का जवाब था कि, पांच हजार सालों का प्रयागराज का इतिहास रहा है। किसी ने हम पर आक्रमण कर उस इतिहास को मिटाने की कोशिश की, उसका नाम बदल दिया तो अगर आज हम अपनी उन जड़ों की तरफ जाने की कोशिश करते हैं तो इसमें क्या गलत है? आगे पूछा गया कि, आपकी नजर में कोई शहर जिसका नाम आप बदलेंगे? तो नेता जी का जवाब बड़ा स्पष्ट और सीधा था कि, अभी कोई दावा नहीं करता, लेकिन कोई नजर में आ गया तो बदल भी देंगे। ऐसी साफगोई से इन ट्रिकी सवालों का जवाब देने वाले नेता थे महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस।
देवेन्द्र फडणवीस ने राजनीति में लंबा वव़त गुजारा है और जमीन पर काम करते हुए, सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़कर, महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में पाँच साल तक काम किया है। वसंतराव नाईक के बाद लगातार पाँच साल सरकार चलाने वाले वे महाराष्ट्र के दूसरे मुख्यमंत्री हैं। महाराष्ट्र में भाजपा की तरफ से पहला मुख्यमंत्री बनने का गौरव भी उन्हें प्राप्त है।यह सही है कि फडणवीस को राजनीतिक फष्ठभूमि पिता से विरासत में मिली, लेकिन इस विरासत के सहारे नहीं, बल्कि अपने काम के दम पर उन्होंने खुद की पहचान बनाई है। इसका प्रमाण है कि आज राजनीति में उन्हें उनके पिता के नाम से नहीं, बल्कि उनके खुद के काम से जाना जाता है।
छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ाव रहा। वे परिषद के सक्रिय सदस्य के रूप में काम करते रहे। संघ से भी जुड़ाव रहा।१‘‘७में नागपुर नगर निगम के सबसे युवा मेयर के रूप में निर्वाचित हुए। इसके बाद उनके राजनीतिक जीवन की गाड़ी में कभी बैक गेयर नहीं लगा बल्कि पूरी रपत़ार से वो लगातार आगे ही बती रही।१‘‘‘ में नागपुर से निर्वाचित होकर महाराष्ट्र विधानसभा पहुँचे और इसके बाद लगातार पहुँचते रहे हैं। भाजपा संगठन में भी उन्होंने समय-समय पर अनेक दायित्वों का निर्वाह किया है। कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि मेयर से मुख्यमंत्री तक का फडणवीस का सफर संघर्ष और परिश्रम से भरा रहा, जिसमें उन्होंने खुद को साबित किया है। आज वे महाराष्ट्र विधानसभा में नेता विपक्ष के रूप में अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।
देवेन्द्र फडणवीस का वक्तÀत्व कौशल भी उत्कृष्ट है। किसी भी विषय को अपनी वैचारिक भावभूमि पर तथ्यों-तर्कों के द्वारा किस प्रकार से स्थापित करना है, ये उनके वक्तव्यों को सुनते हुए समझा जा सकता है।
जैसा कि लेख के आरम्भ में ही एक प्रसंग के माध्यम से हमने स्पष्ट किया कि देवेन्द्र फडणवीस स्पष्टवादी राजनेता हैं। उक्त प्रसंग में उनमें जो साफगोई और खरापन दिखता है,वो उनके व्यक्तित्व की स्थायी विशेषता है। राजनीति में जो घाघपना अक्सर हम देखते रहते हैं, वो फडणवीस में बिलकुल नहीं है। जो उनके ज़हन में है, वही ज़बान पर भी होता है।वे अपनी बात कहते हुए वोटबैंक का नहीं, वैचारिक प्रतिबद्धता का स्मरण रखते दिखाई देते हैं।यही कारण है कि आप की अदालत में जब रजत शर्मा उनसे हिन्दू आतंकवाद को लेकर प्रश्न करते हैं, तो बिना किसी लाग-लपेट के उनका स्पष्ट कथन होता है कि, हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता और जो आतंकवादी है, वो हिंदू नहीं हो सकता।
देवेन्द्र फडणवीस का वक्तÀत्व कौशल भी उत्कृष्ट है। किसी भी विषय को अपनी वैचारिक भावभूमि पर तथ्यों-तर्कों के द्वारा किस प्रकार से स्थापित करना है, ये उनके वक्तव्यों को सुनते हुए समझा जा सकता है। उनको सुनते हुए अच्छा यह भी लगता है कि एक गैर-हिंदीभाषी राज्य से होने के बावजूद वे सही उच्चारण के साथ धाराप्रवाह हिंदी में अपनी बात रख लेते हैं। मराठी तो खैर वे बोलते ही हैं।
फडणवीस के व्यक्तित्व में एक आम आदमी जैसी सहजता और सरलता है। ऐसी कई बातें जिन पर लोग असहज हो सकते हैं, उन पर वे बड़ी सहज प्रतिक्रिया दे डालते हैं।मुझे याद आता है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद उनसे उनकी पत्नी को लेकर एक साक्षात्कार में पूछा गया था कि, आपकी पत्नी नौकरी करती हैं। अब आप मुख्यमंत्री बन गए हैं, तो क्या चाहेंगे कि वे नौकरी करें या ये चाहेंगे कि घर पर रहें? इस पर उनका जवाब था कि, मुझे ये समझ नहीं आता कि मुख्यमंत्री बनने के बाद ऐसी कौन-सी चीज होने वाली है, जिसके कारण मेरी पत्नी को नौकरी छोड़नी पड़े।मुख्यमंत्री की कुर्सी कोई जनम भर के लिए तो नहीं है। ऐसा सीधा और सहज उत्तर वही नेता दे सकता है, जिसके भीतर एक आम आदमी बसता हो।
२०१४ से २०१९ तक फडणवीस महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे हैं और २०१९ के चुनाव में भी जनादेश उन्ही के लिए था लेकिन शिवसेना ने चुनाव परिणामों के बाद पलटी मार ली जिससे वे मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। लेकिन, मुझे लगता है कि फडणवीस में जो संभावना है, वो केवल मुख्यमंत्री पद से बहुत आगे की है। हालांकि, यह कहना दूर की कौड़ी जैसा है लेकिन दूर भविष्य में यदि कभी महाराष्ट्र से भाजपा में प्रधानमंत्री के चेहरे की बात आई तो वे निश्चित रूप से जनता की पहली पसंद सिद्ध हो सकते हैं।