प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने २ अगस्त, २०२१ को ई-वाउचर आधारित डिजिटल भुगतान प्रणाली ई-रुपी का आगाज किया। इससे डिजिटल भुगतान को बढ़ावा मिलने और भ्रष्टाचार पर लगाम लगने की उम्मीद है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार इस नई भुगतान प्रणाली से सबसे अधिक फायदा विभिन्न सामाजिक योजनाओं के मौजूदा लाभार्थियों को मिलेगा। इसका इस्तेमाल आगे जाकर प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी)के विकल्प के रूप में किया जा सकेगा। इसकी मदद से सामाजिक योजनाओं के लाभार्थियों को पारदर्शी और सुरक्षित तरीके से नकदी एवं अन्य सुविधाएँ मिल सकेंगी। इस सुविधा का लाभ लेने के लिए लाभार्थी को न तो किसी से मिलना पड़ेगा और न ही किसी से कोई पैरवी करनी पड़ेगी।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मौजूदा समय में डीबीटी यह सुनिश्चित करता है कि पैसा सही लाभार्थी तक पहुंचे। इससे सरकार को अरबों-खरबों रूपये की बचत हो रही है। डीबीटी के जरिये ९० करोड़ से अधिक नागरिकों को फायदा मिला है। इसके जरिये पीएम किसान सम्मान निधि, सार्वजनिक वितरण सेवाएं, एलपीजी गैस सब्सिडी आदि योजनाओं के लाभार्थियों को लाभ हुआ है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिसंबर, २०१६ में शुरू किए गए भीम-यूपीआई भुगतान प्रणाली की तरह ई-रुपी को भी डिजिटलीकरण की दिशा में किया गया एक बड़ा सुधार मान रहे हैं। उल्लेखनीय है कि यूपीआई प्रणाली ने भारत में भुगतान प्रक्रिया को पूरी तरह से बदल दिया है। इसमें अंतर्निहित फ़ायदों की वजह से आज यह सभी वर्गों के बीच डिजिटल भुगतान करने का सबसे पसंदीदा माध्यम बना हुआ है। जुलाई, २०२१ में यूपीआई के जरिये ३ अरब लेनदेन किए गए, जो राशि में ६ लाख करोड़ रुपये से अधिक थी।
क्या है ई-रूपी
ई- रूपी एक प्रीपेड ई-वाउचर है, जिसे नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) ने वित्तीय सेवा विभाग, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के साथ मिलकर विकसित किया है। ई-रूपी के विकास में एनपीसीआई के अलावा दूसरे विभाग इसलिए शामिल हुए हैं, क्योंकि इनके द्वारा विभिन्न सामाजिक योजनाओं के तहत सबसे अधिक संख्या में लाभार्थियों को डीबीटी किया जाता है।
ई-रूपी डिजिटल करेंसी को विकसित करने की दिशा में पहला कदम है। यह गिपट वाउचर के समान है, जिसे क्रेडिट या डेबिट कार्ड या मोबाइल ऐप या फिर इंटरनेट बैंकिंग के बिना बैंक की चुनिंदा शाखाओं पर इसका भुगतान लिया जा सकता है। यह एक क्यूआर कोड या एसएमएस सिट्रग आधारित ई-वाउचर है, जिसे सीधे लाभार्थियों के मोबाइल पर भेजा जाता है।
ई-रूपी के जरिए सरकारी योजनाओं से जुड़े विभाग या संस्थान शारीरिक रूप से बिना किसी व्यक्ति के संपर्क में आए सीधे लाभार्थियों को लाभ पहुंचा सकते हैं। इस प्रणाली में यह भी सुनिश्चित किया जायेगा कि लेनदेन पूरा होने के बाद ही सर्विस प्रोवाइडर को भुगतान किया जाए। प्रीपेड होने की वजह से इस प्रक्रिया में किसी भी मध्यस्थ को शामिल किए बिना सर्विस प्रोवाइडर को समय पर भुगतान किया जा सकेगा।
ई-रूपी के फायदे
इस प्रणाली का उपयोग बहुआयामी है, लेकिन इसका सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य ऑनलाइन भुगतान को आसान एवं सुरक्षित बनाना है। इससे लेनदेन बिना नकदी के किया जा सकता है। इस प्रणाली में बिचौलिये की कोई भूमिका नहीं है, क्योंकि यह प्रणाली भुगतान करने वाले और भुगतान लेने वाले को सीधे तौर पर जोड़ती है। इससे सरकारी योजनाओं का लाभ लाभार्थियों को सीधे मिलेगा, जिससे भ्रष्टाचार के मामलों में कमी आयेगी। इस डिजिटल वाउचर का उपयोग निजी क्षेत्र में कंपनियाँ अपने कर्मचारियों के कल्याण और कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के निर्वहन के लिए भी कर सकते हैं। इसका इस्तेमाल माँ एवं बच्चे के कल्याण,टीबी उन्मूलन,आयुष्मान भारत,खाद सब्सिडी आदि योजनाओं के तहत लाभार्थियों की भुगतान जरूरतों को पूरा करने में किया जा सकता है। कोरोनाकाल में कोई भी कंपनी अपने कर्मचारियों का टीकाकरण करने के लिए इस सुविधा का लाभ उठा सकती है। लाभार्थी को चिन्हित अस्पताल में मुपत टीके तभी मिलेंगे, जब वह ई-रुपीएसएमएस या क्यूआर कोड दिखायेगा।
ई-वाउचर्स जारी करने की प्रक्रिया
ई-रूपी वाउचर को बैंक जारी करेंगे। अगर किसी कॉरपोरेट या सरकारी एजेंसी को किसी खास व्यक्ति को ई-रूपी वाउचर देना है तो उसे सरकारी या निजी बैंक से संपर्क करना होगा। लाभार्थी की पहचान मोबाइल नंबर के जरिए होगी और सर्विस प्रोवाइडर को बैंक एक वाउचर आवंटित करेगा, जो किसी व्यक्ति विशेष के नाम से जारी किया जायेगा और जिसके नाम से यह ई-रूपी वाउचर जारी किया गया,सिर्फ वही इसका भुगतान ले सकेगा।
ई-रूपी जैसे वाउचर विदेशों में भी हैं प्रचलित
अमेरिका में शिक्षा के क्षेत्र में ई-वाउचर प्रणाली प्रचलित है,जिसके जरिए सरकार छात्रों की पाई के लिए उनके माता-पिता को सीधे तौर पर भुगतान करती है,ताकि बच्चों की शिक्षा में कोई बाधा नहीं आये। अमेरिका के अलावा ई-वाउचर प्रणाली कोलंबिया, चिली, स्वीडन,हांगकांग आदि देशों की स्कूलों में भी प्रचलित है।
डिजिटल करेंसी और ई-रूपी में अंतर
भारतीय रिजर्व बैंक डिजिटल करेंसी लाने की योजना पर काम कर रही है। हालांकि,ई-रूपी वाउचर वर्चुअल करेंसी से अलग है, क्योंकि यह एक तरह से वाउचर आधारित भुगतान प्रणाली है।
फिर भी, ई-रूपी के आगाज से डिजिटल भुगतान की अवसंरचना को मजबूत करने वाले विकल्पों को समझने में मदद मिलेगी और उसे मजबूत करने की दिशा में कालांतर में अग्रतर कार्रवाई की जा सकेगी।
ई-रूपी की मुश्किलें
भले ही ई-रूपी का आगाज देश में हो गया है। फिर भी,अभी तक यह साफ नहीं हुआ है कि वैसे लाभार्थियों के संदर्भ में सरकार या निजी संस्थान या फिर कॉर्पोरेट क्या करेंगे, जिनके पास मोबाइल फोन नहीं है, क्योंकि ३१ जनवरी २०२० तक देश में ११५.६ करोड़ लोग मोबाइल का इस्तेमाल जरूर कर रहे थे, लेकिन स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वालों की संख्या लगभग ५० करोड़ थी। हालाँकि,इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार डीबीटी योजना को कुछ और समय तक ई-रूपी प्रणाली के साथ-साथ जारी रख सकती है। फिर भी, सरकार को गरीबों और वंचित तबके के लोगों को इसके फ़ायदों एवं इसके इस्तेमाल के तरीकों के बारे में शिक्षित करना होगा, क्योंकि लाभार्थी मोबाइल पर आए क्यूआर कोड या एसएमएस को गलती से डिलीट भी कर सकते हैं, क्योंकि आज कल मोबाइल पर रोज २० से २५ फालतू संदेश जरूर आते हैं, जिन्हें मोबाइल में स्पेस बनाये रखने के लिए नियमित तौर पर मोबाइल यूजर्स को डिलीट करना पड़ता है।
फिलहाल, सरकार के ५४ मंत्रालयों द्वारा ३१५ डीबीटी योजनाएं संचालित की जा रही हैं। हालाँकि,सभी योजनायेँ सभी के लिए लागू नहीं हैं। फिर भी, सभी लागू योजनाओं के लाभार्थियों की संख्या अच्छी-ख़ासी है। राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) के आंकड़ों के मुताबिक अब तक डीबीटी योजनाओं के तहत ७.३२ लाख करोड़ लेनदेन किए गए हैं और इसके अंतर्गत लाभार्थियों को लगभग १.४२ लाख करोड़ रुपये अंतरित किए गए हैं।
ई-रूपी वाउचर प्रणाली को अमलीजामा पहनाने में बैंकों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन बैंक पहले से ही कई सामाजिक योजनाओं को पूरा करने में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। इस नई प्रणाली के आने से बैंकों पर और भी कार्यभार बेगा, लेकिन बैंक के कर्मचारियों की संख्या में फिलहाल इजाफा करने का कोई प्रस्ताव नहीं है, जिससे बैंकों को इस नई प्रणाली को अमलीजामा पहनाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
निष्कर्ष
कहा जा सकता है कि ई-रुपी वाउचर एक ऐसी भुगतान प्रणाली है, जिसका इस्तेमाल डीबीटी के विकल्प के तौर पर भविष्य में किया जा सकता है। फिलवक्त,डीबीटी के जरिये राशि लाभार्थी के बैंक खाते में सीधे अंतरित की जाती है, जबकि ई-रुपी के माध्यम से एक समान राशि वाला वाउचर सीधे लाभार्थियों के मोबाइल फोन पर एसएमएस सिट्रग या क्यूआर कोड के रूप में भेजा जा सकेगा। लाभार्थी एसएमएस या क्यूआर कोड बैंकों के चिन्हित शाखा में दिखाकर उसका भुगतान ले सकेंगे। अगर ई-रूपी वाउचर किसी सुविधा का लाभ लेने के लिए जारी किया जायेगा तो लाभार्थी को उक्त संस्थान या विभाग में जाकर लक्षित सुविधा का लाभ लेना होगा, क्योंकि इरूपी वाउचर का इस्तेमाल सिर्फ लक्षित मकसद के लिए किया जा सकता है। अन्य उद्देश्य के लिए इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। उदाहरण के तौर पर अगर ई-रुपी को टीकाकरण करवाने के लिए जारी किया गया है तो इसका इस्तेमाल लाभार्थी केवल टीकाकरण केंद्र पर ही कर सकेंगे।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग में सहायक महाप्रबंधक हैं)