शिक्षा और स्वास्थ्य अभी भी प्राथमिकता से बाहर हैं

दुनिया भर में आर्थिक असुरक्षा और आर्थिक गैरबराबरी एक चिंता का विषय बन चुकी है। भारत में भी स्थिति चिंताजनक है। इनके निराकरण के लिए सभी देशों में सरकारें सक्रिय कदम उठाती हैं। इस कार्य में पुनर्वितरण के लिए राजस्व इकट्ठा करना एक महत्वपूर्ण औजार है। राजस्व इकट्ठा करने में आयकर के अलावा और भी विकल्प हैं जैसे संपत्ति कर, जागीर और पैतृक धन पर कर, जो कि केवल उन पर लागू होते हैं, जिनके हाथों में संपत्ति और पैतृक धन हो। ऐसे लोगों का अनुपात देश में काफी कम है लेकिन इससे राजस्व बढ़ाने की काफी गुंजाइश है। असमानता के निराकरण के लिए सरकार की तरफ से मौलिक शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को पर्याप्त रूप से उपलब्ध करवाना बहुत जरूरी है।

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दि व्यक्ति को अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य का सहारा हो, तो जीवन की दौड़ के लिए मानो दोनों पैर सलामत हो जाते हैं । इसके विपरीत, यदि ये मौलिक अधिकार उपलब्ध करवाने में हम असमर्थ रहे, इसका अर्थ है कि जीवन की रेस में हम अपेक्षा कर रहे हैं कि दुर्बल पैर वाले भी सलामत पैरवालों का मुकाबला करें, जीवन में सफल रहें । इस नजरिए से देखें तो देश के बजट में शिक्षा और स्वास्थ्य का सबसे पहला अधिकार होना चाहिए । कोरोना के चलते इन दोनों क्षेत्रों का बड़ा नुकसान हुआ है । लगभग सभी राज्यों में प्राथमिक स्कूल एक साल से ऊपर और दिल्ली जैसे राज्यों में तो लगभग पूरे दो साल तक बंद रहे । अब तक काफी नतीजे आ चुके हैं जिनसे पता चलता है कि ऑनलाइन शिक्षा ऊपरी वर्ग के लगभग 10 प्रतिशत बच्चों के लिए कारगर रही है। बाकी बच्चों के लिए यंत्र ना होना, इंटरनेट के लिए पैसे ना होना, घर पर पढ़ाई का माहौल ना होना इत्यादि पढ़ाई में बाधा बने। बावजूद इसके बजट में शिक्षा के लिए कोई खास प्रावधान नहीं। मध्याह्न भोजन योजना जो बच्चों की शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, उसका बजट लगभग 1000 करोड़ रुपए घटा दिया गया है।

आशा थी कि स्वास्थ्य क्षेत्र को सरकारी समर्थन नहीं मिलने की जो गलती 70 सालों तक होती रही , उसे महामारी से मिले सबकों के चलते सुधारा जाएगा। उदाहरण के लिए, विकसित देशों में स्वास्थ्य के लिए सरकारी समर्थन उन देशों के जीडीपी का 5-10 % रहा है । बार – बार दावे किए गए कि स्वास्थ्य को प्राथमिकता दे रहे हैं । लेकिन अभी भी यह जीडीपी के 1 % आसपास ही है और वह भी जब इस ‘ हेल्थ सेक्टर में पेयजल को जोड़ दिया है । पिछले साल से पहले पेयजल को स्वास्थ्य बजट से अलग गिना जाता था। एक अन्य चिंता भी है जब एअर इंडिया सरकारी थी, तब सरकारी संस्थाओं के लिए उसी से यात्रा का नियम था अन्य एअरलाइन सस्ती होने पर, सरकारी खर्च पर बिना अनुमति निजी एअरलाइन से यात्रा नहीं कर सकते। अब एअर इंडिया टाटा की है, तब भी ये नियम जारी है । यानी, अब सरकारी पैसा टाटा की एअर लाइन को सब्सिडाइज करेगा। कुछ हद तक ऐसा स्वास्थ्य में भी हो रहा है। सरकारी बजट में निजी स्वास्थ्य बीमा का बजट बढ़ रहा है, वहां भी सरकारी पैसे से निजी बीमा कंपनियों का कारोबार बढ़ रहा है।

शिक्षा स्वास्थ्य के अलावा , सामाजिक सुरक्षा के कार्यक्रमों में भी बजट बढ़ाने की जरूरत थी । दुनिया भर में कोरोना के चलते 2020 में, वहां की सरकारों ने सामाजिक सुरक्षा जैसी योजनाओं के लिए राहत के रूप में जीडीपी का 5-10 % उपलब्ध करवाया भारत में उसका अनुपात केवल जीडीपी का 1 % था । वास्तव में इस बजट से सरकार के आत्मनिर्भर भारत ‘अभियान की व्याख्या स्पष्ट होती है । सक्षम वर्ग को करों से बचाने के कारण, सरकार के हाथों में आर्थिक रूप से असुरक्षित वर्ग के लिए राजस्व की कमी है , तो उन्हें कहा जा रहा है कि वे आत्मनिर्भर बनें ।

( लेखिका दिल्ली आईआईटी में पढ़ाती हैं। ये उनके निजी विचार हैं )

 

रीतिका खेड़ा