सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के अंतर्गत अनेक मंजिलों व लुटियंस जोन का कायाकल्प हो रहा है। यह भारतीय जनमानस को राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक विकास की ओर अग्रसर कर सशक्त करेगा।
संविधान की प्रस्तावना का पहला ध्येय वाक्य ऐसा है, जिसके आधार पर हमारे संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक, गणराज्य की स्थापना हुई है। भारत के 76 वर्षों की आजादी के उपरांत, नवीन संसद भवन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनावृत्त किया। २८ मई २०२३ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा अध्यक्ष, ओम बिड़ला के साथ नए संसद भवन को राष्ट्र को समर्पित किया। यह देश के लोकतांत्रिक इतिहास में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां भारत की संसदीय प्रणाली की शक्ति का प्रतिनिधित्व होता है।इस दौरान प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि ये सिर्फ एक भवन नहीं है। ये 140 करोड़ भारतवासियों की आकांक्षाओं और सपनों का प्रतिबिंब है। ये विश्व को भारत के दृढ संकल्प का संदेश देता हमारे लोकतंत्र का मंदिर है। ये नया संसद भवन, योजना को यथार्थ से, नीति को निर्माण से, इच्छा शक्ति को क्रियाशक्ति से, संकल्प को सिद्धि से जोडऩे वाली अहम कड़ी साबित होगा।भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र ही नहीं बल्कि लोकतंत्र की जननी भी है। लोकतंत्र हमारे लिए सिर्फ एक व्यवस्था नहीं, एक संस्कार है, एक विचार है, एक परंपरा है।स्वतंत्रता के ७५वें वर्ष के दौरान एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा नए संसद भवन का अनावरण भारतीयों द्वारा अभिकल्पित और निर्मित यह उत्कृष्ट भवन संपूर्ण देश की संस्कृति, गौरव एवं उमंग को समाहित करता है और एक बड़े संसद भवन की भारतीय लोकतंत्र की दीर्घकालिक आवश्यकता (जहाँ भविष्य में सीटों और संसद सदस्यों की संख्या में वृद्धि होनी है) की पूर्ति के लिये तैयार है।इसी दौरान प्रधानमंत्री ने संसद भवन में भारत को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक सेन्गोल को भी स्थापित किया।
क्यों जरूरत पड़ी नए संसद भवन की ?
यह अधिकतर लोगों को ज्ञात नहीं है कि नवीन संसद भवन क्यों बनाया जा रहा है? 1911 में ब्रिटिश इंपीरियल सरकार व वाइसरीगल प्रशासन ने निर्धारित किया था कि ब्रिटेन, भारतीय साम्राज्य की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित कर रहा है। ब्रिटिश राज ने नए शहर के निर्माण के लिए विधिवत रूप से, सर एडविन लुटियंसको यह महत्वपूर्ण कार्य दिया। सर एडविन लुटियंस ने एक औपचारिक धुरी के आसपास केंद्रित, आधुनिक शहर की कल्पना की, जिसे राजपथ कहा जाता है। लुटियंस, वाइसरीगल महल से दिल्ली शहर का विहंगम दृश्य देखना चाहते थे। नतीजतन, रायसीना हिल, राजपथ व इंडिया गेट का निर्माण हुआ। अब इसे कर्तव्य पथ के नाम से जाना जाता है। राजपथ के आसपास की अधिकांश इमारतों को एडविन लुटियंस और सर हर्बर्ट बेकर द्वारा डिज़ाइन किया गया था। इसमें सरकार की योजना बनाना, सुरक्षा की व्यवस्था व पूरे आयोजन की तैयारी की देखरेख करना शामिल है।सरकारी डेटा के अनुसार वर्ष १९२७ में निर्मित मौजूदा संसद भवन को एक पूर्ण लोकतंत्र के लिये द्विसदनीय विधायिका को समायोजित करने हेतु डिज़ाइन नहीं किया गया था। वर्ष १९७१ की जनगणना पर आधारित परिसीमन के साथ लोकसभा सीटों की संख्या ५४५ निर्धारित किये जाने के बाद से संसद भवन में बैठने की व्यवस्था तंग और बोझिल हो गई थी एवं वर्ष २०२६ के बाद समस्या में व्यापक वृद्धि होने की संभावना थी क्योंकि सीटों की कुल संख्या पर रोक वर्ष २०२६ तक के लिये ही लागू है और परिसीमन होने के बाद समस्याए बढत़ी, जिससे व्युत्पन्न अन्य दिक्कते पैदा होती। वर्तमान संसद भवन में अवसंरचनात्मक और संरचनात्मक दिक्कतों के साथ ही सीमित कार्यालय क्षमता, सीमित उत्पादकता, नए आधुनिक प्रौद्योगिकी को समाहित करने की क्षमता न होने के कारण भविष्य में दिक्कतें आती।
अनूठी विशेषताओं वाला संसद भवन
भारत के पास 1927 से मौजूदा संसद भवन है, जो अत्याधुनिक वास्तुशिल्प चमत्कार के रूप में खड़ा है। जैसा कि भारत में वर्तमान संसद भवन के अस्तित्व को एक सदी हो गई है, नवनिर्मित संसद भवन इतिहास में उत्कृष्ट योगदान देने वाला है। सरकार ने लोकसभा व राज्यसभा में संसद सदस्यों के बैठने की बेहतर व्यवस्था की है। यह महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। पुराने संसद भवन में गोलाकार डिजाइन का प्रदर्शन है, जबकि नए संसद भवन को त्रिभुज आकार में वास्तुशिल्पीय रूप से तैयार किया गया है। वर्तमान में, लोकसभा में ५९० व्यक्तियों के बैठने की क्षमता है, जबकि राज्यसभा में २८० सदस्य बैठ सकते हैं। नए संसद भवन की लोकसभा में ८८८ सीटें हैं, जिससे क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसके अलावा, दोनों सदनों के संयुक्त सत्र के दौरान, संसद के १२७२ से अधिक सदस्य लोकसभा कक्ष के भीतर रह सकते हैं। संसद की नई इमारत में ३३६ से अधिक लोगों के बैठने की व्यवस्था, आगंतुक दीर्घा में की गई है।नया संसद भवन लगभग ६५००० वर्ग मीटर निर्मित क्षेत्र को दायरे में लेता है। इसका त्रिकोणीय आकार उपलब्ध स्थान के इष्टतम एवं कुशल उपयोग को सुनिश्चित करता है नवनिर्मित भवन अत्याधुनिक संचार प्रौद्योगिकी से सुसज्जित अति-आधुनिक कार्यालय स्थान भी प्रदान करता है, जो दक्षता एवं सुरक्षा को बढ़ावा देता है।
नया संसद भवन प्लैटिनम-रेटेड ग्रीन बिल्डिंग के रूप में स्थापित है, जो पर्यावरणीय संवहनीयता के प्रति भारत के समर्पण को प्रदर्शित करता है। लोकसभा और राज्यसभा कक्षों में प्रभावी विधायी कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए एक डिजिटल मतदान तंत्र, सु-अभियांत्रिक ध्वनिकी और अत्याधुनिक दृश्य-श्रव्य तंत्रों की स्थापना की गई है। इससे पर्यवेक्षकों और मेहमानों के लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध होगी नए भवन में कैफे, भोजन क्षेत्र व समिति बैठक कक्षों में अत्याधुनिक उपकरण हैं। सांसदों और गणमान्य व्यक्तियों की विविध आवश्यकताओं को समायोजित करने के लिए कॉमन रूम, महिला लाउंज और वीआईपी लाउंज को शामिल किया गया है। नए संसद भवन का प्रमुख आकर्षण; इसके केंद्र में स्थित कॉन्स्टिट्यूशन हॉल है। कॉन्स्टिट्यूशन हॉल के शीर्ष पर अशोक स्तंभ है, जो भारतीय विरासत का प्रतीक है। संविधान की एक प्रति इस हॉल के भीतर सुरक्षित रखी जाएगी। संसद भवन की भव्यता को बढ़ाने के लिए, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस और भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों जैसे श्रद्धेय व्यक्तियों के चित्र नए संसद भवन के हॉल की शोभा बढ़ाते हैं। लोकसभा कक्ष की आंतरिक साज-सज्जा भारत के राष्ट्रीय पक्षी मोर से प्रेरित है, जबकि राज्यसभा कक्ष को राष्ट्रीय पुष्प कमल की प्रेरणा से सुसज्जित किया गया है। ये राष्ट्र की समृद्ध प्रतीकात्मकता को प्रकट करते हैं साथ ही सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक सेन्गोल की स्थापना के साथ भारत को सत्ता हस्तांतरण के प्रति प्रतीकात्मक श्रद्धांजलि दी गई है। गौरतलब है कि नई संसद का निर्माण, केंद्र सरकार की सेंट्रल विस्टा परियोजना का महत्वपूर्ण घटक है। १५ जनवरी, २०२१ को शुरू होने वाली निर्माण प्रक्रिया को सितंबर २०२० में दिए गए टेंडर के माध्यम से टाटा प्रोजेक्ट्स को सौंपा गया था। नए संसद भवन के डिजाइन के दूरदर्शी वास्तुकार बिमल पटेल को उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए २०१९ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
सेन्गोल की स्थापना
सेन्गोल शब्द तमिल शब्द सेम्मई से व्युत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है नीतिपरायणता (ींग्ुप्ूदल्ेहोे)। यह स्वर्ण का बना था और चोल साम्राज्य में अपने अधिकार का प्रतिनिधित्व करने के लिये औपचारिक अवसरों के दौरान शासकों द्वारा धारण किया जाता था। इसे उत्तराधिकार एवं वैधता के निशान के रूप में एक राजा द्वारा दूसरे राजा को सौंपा जाता था। चोलों ने ९वीं से १३वीं शताब्दी ईस्वी में तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा और श्रीलंका के कुछ हिस्सों पर शासन किया था। समारोह आमतौर पर एक उच्च पुरोहित या गुरु द्वारा संपन्न किया जाता था जो नए शासक को आशीर्वाद देते थे और उसे सेन्गोल सौंपते थे। सी. राजगोपालाचारी ने सत्ता हस्तांतरण के लिये उपयुक्त समारोह के रूप में सेन्गोल सौंपने के चोल अनुष्ठान का सुझाव दिया क्योंकि यह भारत की प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति के साथ-साथ विविधता में इसकी एकता को प्रतिबिंबित करेगा वर्ष १९४७ में सेन्गोल प्राप्त करने के बाद नेहरू ने इसे कुछ समय के लिये दिल्ली में अपने आवास पर रखा और फिर इसे इलाहाबाद (प्रयागराज) में आनंद भवन संग्रहालय में रखवा दिया। यह सात दशकों से भी अधिक समय तक आनंद भवन संग्रहालय में पड़ा रहा। वर्ष २०२१-२२ में जब सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना चल रही थी, सरकार ने एक ऐतिहासिक घटना को पुनर्जीवित करने और नए भवन में सेन्गोल स्थापित करने का निर्णय लिया। नए संसद भवन में सेन्गोल की स्थापना सिर्फ एक सांकेतिक मुद्रा नहीं है, बल्कि एक सार्थक संदेश भी है। यह दर्शाता है कि भारत का लोकतंत्र अपनी प्राचीन परंपराओं एवं मूल्यों में निहित है और यह भी कि यह समावेशी है और इसकी विविधता एवं बहुलता का सम्मान करता है।
विपक्ष का निरर्थक विरोध
उद्घाटन समारोह में विविध व्यक्तियों की उपस्थिति, देश के लोकतांत्रिक लोकाचार व राजनीतिक प्रतिनिधियों के बीच सहयोग की भावना को प्रदर्शित करता है। यह सभी पार्टियों के नेताओं को एक साथ आने, अपने मतभेदों को दूर करने और राष्ट्र की नींव बनाने वाली लोकतांत्रिक संस्थाओं का जश्न मनाने का अवसर है। नया संसद भवन भारत के लिए गौरवपूर्ण व महत्वपूर्ण क्षण है। यह देश की प्रगति, लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता व राजनीतिक संस्थानों की ताकत का प्रतिनिधित्व करता है। नए संसद भवन के उद्घाटन में सभी प्रमुख मंत्रालयों के सचिवों के साथ, संसद सदस्यों व महत्वपूर्ण नेताओं को आमंत्रित किया गया। सचिवों की भागीदारी इस बात को महत्व देती है कि सरकारी नीतियां को लागू करने की भूमिका में ये लोग सरकार का संचालन करते हैं। नए संसद भवन के मुख्य वास्तुकार बिमल पटेल और उद्योगपति रतन टाटा ने इस अवसर में भाग लिया। कई उल्लेखनीय व्यक्तियों, फिल्मी सितारों व खिलाडिय़ों ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया परंतु १९ विपक्ष दलों द्वारा नए संसद भवन के उद्घाटन के बहिष्कार के रवैये ने न केवल भारतीय लोकतांत्रिक मर्यादा का उल्लंघन किया बल्कि विपक्ष की लोकतांत्रिक मानसिकता पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा किया। ऐसे गरिमामयी क्षणों और विशिष्ट अवसर पर विपक्ष की यह राजनीतिक पैंतरेबाजी उसके नैतिक क्षय को प्रदर्शित करता है, विपक्ष के बहिष्कार ने न केवल उनके लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति निष्ठुरता को प्रदर्शित किया है, बल्कि लोकतंत्र के मंदिर के अपमान के साथ साथ सवा सौ करोड़ देशवासियों के भावनाओं पर भी कुठाराघात किया हैं। यह केवल एक राजनीतिक पैतरेबाजी हैं जिसमे अंध मोदी विरोध और २०२४ के राजनीतिक लाभ समाहित हैं पर यह कामयाब नहीं होगा।
सारांशार्थ यह कहना उपयुक्त होगा कि विपक्षी दलों को इस ऐतिहासिक पर्व को भारतीय संस्कृति, लोकतंत्र व प्रजातंत्र का उत्सव मान कर हिस्सा लेना चाहिए था। लाखों हाथों की मेहनत को सलाम! अब विपक्ष की मुहिम थी कि महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा संसद भवन का उद्घाटन नहीं किया गया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्यों किया, मात्र राजनीतिक तकरार ही है। इस मुद्दे की चर्चा तो रचनात्मक हो सकती थी परंतु, उद्घाटन कार्यक्रम का बहिष्कार करना प्रजातांत्रिक व्यवस्था का अपमान है। सच तो यह है कि इतिहास को पीछे नहीं धकेला जा सकता। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के अंतर्गत अनेक मंजिलों व लुटियंस ज़ोन का कायाकल्प हो रहा है। यह भारतीय जनमानस को राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक विकास की ओर अग्रसर कर आत्मनिर्भरता की और सशक्त करेगा, यह नए भारत की नई संसद वाकई में समावेशिता और समग्रता को समेटे लोकतांत्रिक जड़ों को और मजबूत करेगा।