आज सेवा क्षेत्र में भारत जिस तरह चमक रहा है उसमें हरीश मेहता जैसे क्षमतावान लोगों की ऊर्जा लगी है। नई सोच और टीम वर्क से कैसे किसी उद्योग की तस्वीर बदली जा सकती है, हरीश मेहता इसके अनुपम उदाहरण हैं।
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो दुनिया बदल देते हैं और शेष लोग उस बदली हुई दुनिया में अपना जीवन-उद्देश्य तलाशते हैं। हरीश मेहता पहली श्रेणी में आने वाले दिग्गज हैं। ऐसा दिग्गज जिसने भारतीय आईटी जगत की सूरत-सीरत बदलने में खुद को झोंक दिया। आज सेवा क्षेत्र में भारत जिस तरह चमक रहा है उसमें हरीश मेहता जैसे क्षमतावान लोगों की ऊर्जा लगी है। नई सोच और टीम वर्क से कैसे किसी उद्योग की तस्वीर बदली जा सकती है, मेहता इसके अनुपम उदाहरण हैं। आइये पहले उस पृष्ठभूमि को समझते हैं जब भारत नई प्रौद्योगिकी के लिए तैयार हो रहा था।
बदलाव की आहट और मेहता का आगमन
१९८० और २०१० के दशक के अंत के बीच कहीं न कहीं, भारत अपरिमित रूप से बदल रहा था। धूल से भरे पुराने औपनिवेशिक कार्यालय-भवनों से लेकर शानदार कांचयुक्त कॉरपोरेट ऑफिस तक और कर्मचारियों की जी-हुजूरी से लेकर ऐसे निर्भीक युवक-युवतियाँ तक जो अपने बॉस के त्रुटिपूर्ण फैसले पर सवाल उठाने से भी नहीं डरते। सपेरों और नटों की परंपरागत पश्चिमी रूढ़िवादिता छवि से लेकर वैश्विक प्रौद्योगिकी केंद्र तक में परिवर्तित भारत की वर्तमान तस्वीर एक अलग ही कहानी बयां कर रही है।
लेकिन सवाल उठता है कि इतने कम समय में यह अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ कैसे? ऐसे परिवर्तन के बीज कहां बोए गए? क्या यह एक महज संयोग था या यह एक ऐसा परिवर्तन था जिसे भारतीय भूमि के भीतर विकसित किया गया था?
इस बात के जवाब के लिए हमें उन व्यक्तियों से परिचित होना होगा जो इस दौरान भारतीय उद्योग और अर्थव्यवस्था को नए आयाम दे रहे थे। इसी क्रम में हमें आईटी उद्योग के प्रणेता हरीश मेहता सरीखे नवाचारी और उद्यमी व्यक्तित्व से रूबरू होना होगा जिन्होंने निस्संदेह रूप से अपनी दूरदर्शिता के माध्यम से भारत के प्रौद्योगिकी परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ी है।
व्यक्तित्व परिचय और पेशेवर योगदान
आईटी क्रांति से बहुत पहले हरीश मेहता की यात्रा की शुरुआत हो गई थी। तब भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग लगभग अस्तित्व में नहीं था। १९८० के दशक में तमाम सॉफ्टवेयर पेशेवरों की तरह हरीश मेहता भी अपनी पत्नी के साथ अमेरिकी ड्रीम का पीछा करते हुए वहाँ पहुँचे और डेटाबेस मैनेजर के रूप में कार्य प्रारंभ किया। लेकिन कुछ अलग करने की चाह और पारिवारिक आकर्षण ने उन्हें भारत वापस लाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने तय किया कि भारत ही उनकी कर्मभूमि होगी। दुर्भाग्य से उस समय, सॉफ्टवेयर एक ऐसा उद्योग था जो भारत सरकार की नजर में कोई अस्तित्व ही नहीं रखता था। तत्कालीन समय के अन्य युवा
सॉफ्टवेयर उद्यमियों द्वारा रेखांकित की गई इसी समस्या को देखते हुए मेहता को पता था कि कुछ न कुछ करना है। इसके लिए कठिन परिश्रम की आवश्यकता थी। एक तरफ सरकारी तंत्र को इसके लिए तैयार करना था, अफसरशाही से जूझना था तो दूसरी तरफ परस्पर प्रतिस्पर्धी समूह को एक मंच पर लाना था। इन प्रयासों के बिना भारत में आईटी सेक्टर अस्तित्व में नहीं आ सकता था। श्री मेहता ने भी ठान लिया था कि वो ऐसा करके रहेंगे। यही वह प्रेरक शक्ति थी जिसने उन्हें नैसकाम के सह-संस्थापक के रूप में स्थापित किया। अपनी स्थापना के महज तीन दशकों के भीतर ५२ मिलियन डॉलर सालाना आईटी सेवा निर्यात उद्योग को २२७ बिलियन डॉलर सालाना सेवा निर्यात उद्योग में बदलने के लिए इस संस्था ने महती भूमिका निभाई है।
हरीश मेहता बताते हैं कि नैसकॉम में वे सहयोग और प्रतिस्पर्धा एक साथ करते हैं। नैसकॉम के सदस्यों ने माना कि नियमों की अनभिज्ञता से उद्योगों की क्षमता प्रभावित हो रही थी। इसके अलावा, उस समय भारत में माहौल ऐसा था कि सरकार और नौकरशाहों को उद्यमियों पर बिल्कुल भरोसा नहीं था। इसलिए, उन्होंने उद्योगों को विशिष्ट जरूरतों और कार्यप्रणाली को समझे बिना मनमाने ढंग से नीतियाँ और नियम बनाना जारी रखा। इनसे उद्योग जगत की क्षमताएँ प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रही थीं। यह स्थिति ठीीक हो, इसके लिए एक बेहतर तालमेल और समन्वय की आवश्यकता थी और इस बात को नैसकॉम हुत अच्छी तरीके से समझता था। जहाँ अन्य व्यवसायों और उद्योग संघों ने नौकरशाहों की उनके क्षेत्र में विशेषज्ञता की कमी का लाभ उठाने की कोशिश की, वहीं नैसकॉम ने उन्हें अपनी बैठकों में आमंत्रित किया। साथ ही उन्हें उद्योग की चुनौतियों को समझने के लिए सदस्य कंपनियों का निरीक्षण करने के लिए भी आमंत्रित किया। इस पारदर्शिता और सहयोगात्मक प्रवृत्ति ने एक विश्वास पैदा किया।
जब यह संस्था गठित की गई थी तब नैसकॉम ने नौकरशाहों और नीति निर्माताओं के साथ मिलकर सभी आईटी कंपनियों के लिए समानता के धरातल को सुनिश्चित करने के लिए सॉफ्टवेयर टेक्नोलाजी पार्क्स ऑफ इंडिया स्कीम जैसी नीतियों का निर्माण किया। यह कंपनी के आकार की परवाह किए बिना सभी सॉफ्टवेयर कंपनियों को लाभान्वित करती थीं। सहयोग और प्रतिस्पर्धा का यह मूल्य उन कई मूल्यों में से एक है जो नैसकॉम को अद्वितीय बनाते हैं। श्री मेहता का कहना है कि सहयोग और प्रतिस्पर्धा को समान महत्व प्रदान करना नैसकॉम के विकास की आधारशिला हैं, इसमें कोई व्यक्तिगत एजेंडा नहीं है। श्री मेहता के अनुसार, विशिष्ट मूल्यों और विचारों के इस शक्तिशाली संयोजन ने भारतीय आईटी क्रांति को जन्म दिया जिसने भारत को बदल दिया।
मेहता एक इंजीनियरिंग सेवा और आईटी परामर्श कंपनी ऑनवर्ड टेक्नोलॉजीज के संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष हैं। उन्होंने भारतीय आईटी उद्योग की वृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विशेष रूप से प्रौद्योगिकी, नीति निर्माण और औद्योगिक नवाचार जैसे क्षेत्रों में। इसके लिये इन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सम्मानित भी किया गया है। हरीश मेहता को अक्सर भारत के सॉफ्टवेयर उद्योग के पीछे गैल्वनाइजिंग ताकत कहा जाता रहा है। साथ ही नैसकॉम (नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विस कंपनीज) को आकार देने में उनकी काफी अहम भूमिका रही है। विदित हो कि यह वही संगठन है जिसके तत्वावधान में आज केवल भारतीय आईटी उद्योग का भारत के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान बढव़र ९ प्रतिशत तक हो गया है। नैसकॉम और ऑनवर्ड ग्रुप ऑफ कंपनियों के शीर्ष पर उनका नेतृत्व न केवल उन्हें अनुकरणीय बनाता है बल्कि भारत के आईटी उद्योग की एक सुनहरी तस्वीर भी पेश करता है।
हरीश मेहता का व्यक्तित्व दार्शनिक अभिव्यक्तियों से परिपूर्ण और ज्ञान-साझाकरण की शक्ति में निहित है। यह वही दर्शन है जिसने उन्हें द मावेरिक इफेक्ट के लिए प्रेरित किया। उनकी यह पहली पुस्तक जो प्रकाशित होने के 6 महीने के भीतर ही राष्ट्रीय बेस्टसेलर बन गई और एक आधुनिक क्लासिक पुस्तक बनने की राह पर मजबूती से आगे बढ़ रही है। यह पुस्तक न केवल उस उल्लेखनीय इतिहास को दर्शाती है कि कैसे भारतीय आईटी ने एक राष्ट्र को बदल दिया, बल्कि नैसकॉम के पहले निर्वाचित अध्यक्ष के रूप में हरीश मेहता के संस्मरणों को उनके प्रारंभिक संघर्षों के साथ जोडत़ा भी है। यह पुस्तक हरीश मेहता की सीखों से भरी पड़ी है जो किसी भी छात्र,पेशेवर, उद्यमी, नीति निर्माता, विश्लेषक और राष्ट्र निर्माता को उपयोगी और प्रासंगिक लगेगी। इस पुस्तक को पाठकों के सभी वर्गों से अभूतपूर्व प्रशंसा मिली है जिसमें भारत के शीर्ष व्यापार जगत के नेता जैसे एन.आर.नारायण मूर्ति, एन. चंद्रशेखर,अनुपम मित्तल और रामदेव अग्रवाल भी शामिल हैं।
आईटी क्षेत्र द्वारा संचालित विकास ने पूंजी और जनशक्ति का प्रवाह हैदराबाद, पुणे, बेंगलुरु और गुडग़ांव जैसे शहरों में किया। इसके बाद ये शहर तेजी से फले फूले। इसने अच्छे वेतन वाले सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर्स के माध्यम से ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास का निर्माण किया, जो अपनी जीविका तक ही सीमित नहीं रहे बल्कि अपने परिवारों के आर्थिक स्तर को भी कई पायदान आगे ले गए। ये परिवार टीयर 2 और 3 शहरों से महानगरों में रहने के लिए सक्षम हो गए। दुग्ध उद्योग की श्वेत क्रांति और कृषि क्षेत्र की हरित क्रांति जैसी कई क्रांतियों को अच्छी तरह से प्रचारित किया गया है, लेकिन जैसा कि हरीश मेहता ने ठीीक ही कहा है, शायद ही हम भारतीय आईटी क्रांति के बारे में सुनते हैं। लेकिन हरीश मेहता की किताब द मैवरिक इफेक्ट ने नैसकॉम के प्रयोगों और तरीकों को भारतीय आईटी क्रांति को उत्प्रेरित करने में मददगार साबित होने की उम्मीद की है। हरीश मेहता ने एक सिलिकॉन वैली आधारित संगठन- द इंडस एंटरप्रेन्योर्स (ऊग्िं), को भारत में पेश किया और मुंबई में वे इसके पहले अध्यक्ष भी थे। आज ऊग्िं ने भारत के चारों ओर एक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया है जो परामर्श और संसाधनों के माध्यम से उद्यमियों को अपेक्षित सहायता प्रदान करता है।
नवाचार और उन्नति
हरीश मेहता का मानना है कि भारतीय स्टार्ट-अप उद्योग में अभी एक पूरी तरह अप्रयुक्त क्षमता है और उम्मीद है युवा संस्थापक अपने स्टार्टअप उद्योग के साथ – साथ नैसकॉम की प्लेबुक से कुछ सीख लेंगे। इससे ये एक ऐसी क्रांति को जन्म देंगे जो रोजगार सृजन, मूल्य निर्माण को बढ़ावा देगी और भारत में नवाचार की एक नई लहर पैदा करेगी। उद्यमिता की बात करते हुए श्री मेहता को यह भी उम्मीद है कि समाज उद्यमशीलता की विफलता को देखने के अपने नजरिए को बदलेगा। वो कहते हैं कि हमें असफल उद्यमियों को अपराधियों के नजरिए से देखना बंद करना होगा। उनका मानना है कि असफलता किसी भी प्रक्रिया का एक अनिवार्य हिस्सा है। युवा उद्यमियों को उनकी सलाह है, ”विफलता के माध्यम से ही कई मूल्यवान सबक सीखने को मिलते हैं। नवाचार असफलता से जन्म लेता है। तेज और जल्दी असफल होकर, अपनी सीख लें और आगे बढत़े रहेंह्ण। आगे वे कहते हैं कि वैल्यूएशन के बजाय वैल्यू क्रिएशन पर ध्यान दें। वैल्यू क्रिएशन वह है जो व्यवसाय के लंबे समय तक सफल होने के लिए स्टार्ट-अप को बेहतर निवेशकों और सही प्रतिभा को आकर्षित करने में मदद करेगा। भविष्य के भारत के लिए स्टार्टअप्स और अगली पीढ़ी के उद्यमियों के महत्व को पहचानते हुए, मेहता ने जोर देकर कहा, ”भारत की समस्याएँ गहरी, अस्पष्ट और विशाल हैं। हमें हजारों टेक-स्टार्टअप्स तथा एक लाख और टेक्नोप्रेन्योर की जरूरत है जो आपस में जुगनू की तरह साथ आकर काम करेंगे और भारत को रोशन करेंगे।ह्ण एक नवप्रवर्तक उद्यमी, एक निवेशक और खुद एक चेंजमेकर होने के नाते हरीश मेहता का नेतृत्व कौशल अचंभित करता है।
भारत के भविष्य को देखते हुए, हरीश मेहता का मानना है कि भारत में वैश्विक नेता बनने की क्षमता है। हालाँकि, ऐसे कई कदम हैं जिन्हें राष्ट्रीय, उद्योग, संगठनात्मक, उद्यमशीलता और नागरिक स्तर पर पार करने की आवश्यकता होगी। हरीश मेहता दृढत़ा से छात्रों और नागरिकों के बीच वैज्ञानिक मानसिकता के पोषण के महत्व पर विश्वास करते हैं, जो प्रौद्योगिकी के साथ हमारे पारंपरिक मूल्यों से सुसम्बद्ध है। ये उद्यमियों को सरकारों और नीति निर्माताओं द्वारा सुने जाने और वास्तव में सुने जाने के बीच अंतर करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। मेहता का मानना है कि कानून निर्माताओं और न्यायपालिका से बौद्धिक संपदा अधिकारों को मजबूत करने और उनकी रक्षा करने पर एक मजबूत फोकस अधिक शोध और विकास को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकता है और वैश्विक खिलाडिय़ों को अपने आईपी के साथ भारत पर भरोसा करने का विश्वास दे सकता है। इसके अलावा ये स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और उद्यमिता जैसे उद्योगों में क्रांतियों के महत्व पर भी जोर देते हैं ताकि रोजगार के अधिक अवसर सृजित हो पाएँ और पीढिय़ों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद मिल सके।
एक प्रसंग का यहाँ जिक्र करना रोचक होगा। दरअसल, एक बातचीत में वो द मेवरिक इफेक्ट की एक प्रति की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, ”यह पुस्तक भारतीय आईटी, नैसकॉम और भारत के अनकहे इतिहास को साझा करने के लिए लिखी गई थी, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह थी कि इसका उद्देश्य दुनिया के लिए नैसकॉम मॉडल को प्रकट करना था। मुझे उम्मीद है कि यह हर उद्योग के लिए नैसकॉम बनाने में मदद करेगा।ह्ण वह याद करते हैं कि कैसे एक बार चीन के एक प्रतिनिधिमंडल ने फॉरेस्टर रिसर्च के जॉन मैक्कार्थी से पूछा कि आईटी के साथ भारत की सफलता को दोहराने के लिए उन्हें क्या करना होगा। जॉन ने उनसे कहा कि ऐसा करने में सक्षम होने के लिए उन्हें नैसकॉम जैसी संस्था बनानी होगी। हरीश मेहता का मानना है कि अगर पूरा जोर लगा दिया जाए तो भारत आईटी सेक्टर में सोने की चिडिय़ा बन सकता है।
भारतीय आईटी उद्योग की अपनी अद्वितीय समझ और अपने उद्यमशील कौशल के साथ, हरीश मेहता ने हमारे साथ एक विशेष साक्षात्कार में इतिहास के कुछ किस्से, अमूल्य अंतर्दृष्टि और ज्ञान साझा किया है। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश –
NASSCOM भारतीय आईटी उद्योग का प्रतिनिधित्व करने में एक प्रेरक शक्ति रही है। NASSCOM के सह-संस्थापक के रूप में, आपकी यात्रा कहाँ से शुरू हुई, और इसने आपको द मेवरिक इफेक्ट लिखने के लिए कैसे प्रेरित किया?
NASSCOM और भारतीय आईटी उद्योग का भारत पर जो प्रभाव पड़ा है वह अद्वितीय है। दोनों ने साथ मिलकर हमारे जैसे युवा गणतंत्र की कल्पना से परे भारत को बदल दिया। मुझसे अक्सर नैसकॉम की शुरुआत की अंदरूनी कहानी के बारे में पूछा जाता रहा है और मुझे एहसास हुआ कि मैं किसी एक को किसी निश्चित स्रोत के रूप में संदर्भित नहीं कर सकता। और इस प्रकार मैंने एक किताब लिखने का बीड़ा उठाया, जिसका नाम है- द मेवरिक इफेक्ट।
मेरी NASSCOM यात्रा तब शुरू हुई जब मैं ७० के दशक के अंत में अमेरिका से वापस आया और मैंने मेरे जैसे सॉफ्टवेयर उद्यमियों को देखा, जो सॉफ्टवेयर की पॉलिसी के संबंध में नीति निर्माताओं और नौकरशाहों की अनभिज्ञता से परेशान थे। हम सभी ने भारत में वो संभावना देखी जिससे भारत में सॉफ्टवेयर और भारतीय आईटी उद्योग को लाया जा सकता था। भारतीय आईटी और भारत के लिए उस सामूहिक सपने ने आखिरकार हमें एक साथ आकर भारतीय आईटी उद्योग का संघ बनाने के लिए प्रेरित किया, जिसे बाद में नैसकॉम कहा गया।
सहयोग भारतीय उद्योग जगत के लिये नया-नया सा आया मूलमंत्र की तरह लगता है। लेकिन ऐसा लगता है कि आपने कई दशक पहले नैसकॉम के लोकाचार में इसकी कल्पना की थी और इसे स्थापित किया था। ऐसे क्या कारक थे जिनसे आप ऐसा कर पाए?
सहयोग निश्चित रूप से नैसकॉम के स्तंभों में से एक है, लेकिन हम इसे थोड़ा अलग तरीके से करते हैं। र्ऱ्ींएएण्ध्श् में हम सहयोग और प्रतिस्पर्धा करते हैं! शुरुआती सॉफ्टवेयर उद्यमियों के रूप में हमने देखा कि किस तरह उद्योग को विनियमों द्वारा दबा दिया जा रहा था। अगर तत्कालीन सरकारों और नौकरशाहों की अज्ञानता और बाधाओं से निपटने का बीड़ा नहीं उठाया जाता तो ये संभावनाएँ कभी मूर्त रूप नहीं ले पातीं। इसलिए सबसे पहले हमने प्रमुख बाधाओं को दूर करने के लिए सहयोग किया। हमारा उद्देश्य था कि प्रत्येक आईटी कंपनी, चाहे वो बड़ी हो या छोटी, को समान लाभ मिले। इसके परिणामस्वरूप उद्योग का दायरा बड़ा होता गया।
हालाँकि, यह नोट करना महत्वपूर्ण है कि र्ऱ्ींएएण्ध्श् के सहयोग और प्रतिस्पर्धा मॉडल को हमेशा बृहदतर शुभ (र्उीीूी उदद्) के साथ जोड़ा गया है। नैसकॉम के लिये यह बृहदतर शुभ भारत के हितों को पहले रखना और दुनिया में भारत की ब्रांड छवि में सुधार करना था। साथ ही यह शुभ कुछ लोगों के स्वार्थ के लिये विशाल सामाजिक समूह का अपेक्षित लाभ से वंचित रह जाने का प्रतिकार भी था।
आपकी नेतृत्व शैली क्या है और आप जो आज हैं, उसमें यह शैली कैसे मददगार रही है?
मुझे लगता है कि यह बड़े सपने देखने और परस्पर सहयोग करने से मिलकर बना है। मैं निश्चित रूप से पारदर्शिता, संवाद और टीमवर्क को महत्व देता हूँ। हालांकि साथ ही बड़े सपने देखना वास्तव में मुझे उत्साहित करता है। और अब तो देखिये कि जब तक आप असंभव लगने वाले लक्ष्य को हासिल नहीं कर लेते तब तक उसे वास्तविक उन्नति नहीं माना जाता है।
अगर मैं नैसकॉम की शुरुआत को देखता हूँ, तो मुझे वहाँ भी इसकी झलक दिखाई देती है। हम व्यक्तियों के एक समूह को एक साथ लाने में सफल रहे और कुछ मूलभूत सिद्धांतों और मूल्यों पर सहमति बनाई। इनमें किसी व्यक्तिगत एजेंडे के लिये कोई जगह नहीं थी और परस्पर सहयोग व प्रतिस्पर्धा तथा संवृद्धि की मानसिकता के साथ आगे बढऩे का संकल्प था। यह सब आईटी उद्योग और भारत के लिए हमेशा बड़ा सपना देखने और इसे हासिल करने की दिशा में मिलकर काम करने के लिए प्रेरित करता है।
तो, क्या नैसकॉम के काम करने का तरीका आपकी नेतृत्व शैली पर असर डालता है या इसका उल्टा है?
मुझे लगता है कि यह चिकन और अंडे का सवाल अधिक है – पहले क्या आया। मेरा मानना है कि जो सबसे महत्वपूर्ण है वह यह है कि नैसकॉम और मैंने दोनों ने इन आदर्शों, मूल्यों या आप इसे जो भी कहना चाहें, नहीं छोड़ा है।
अगर कोई संस्था या उद्यम सफल होना चाहते हों तो आप उन्हें र्ऱ्ींएएण्ध्श् के किन मूल्यों की सिफारिश करेंगे?
जब हम नैसकॉम के मूल्यों की बात करते हैं तो इसका आशय किसी एक मूल्य से नहीं है कि उससे प्रेरित हुआ जाए, बल्कि यह उन मूल्यों का समुच्चय है जो यहाँ के संस्थानों में रचा-बसा है। ये सांगठनिक मूल्य संस्था के लिये पंख का कार्य करते हैं। एक भाव के रूप में हम इसे मैवरिक माइंडसेट कहते हैं। यह माइंडसेट क्या है, मैं इसे संक्षेप में समझाता हूँ। धारणीय मूल्य के लिये परस्पर सहयोग के साथ प्रतिस्पर्धा करें। आगे बढऩे की मानसिकता के साथ हमेशा बड़े सपने देखें। सीखने के लिये हमेशा तैयार रहें। अपने मूल्यों से कभी समझौता न करें। शोर से संकेतों की पहचान करना सीखें। चीजों को सरल, मितव्ययी और प्रिय रखें। सहयोगात्मक रूप से समाधान खोजें, फिर उन्हें दूसरों के लाभ के लिए संस्थागत बनाएँ।
आपको क्या लगता है कि कौन सी चीजें भारत को सोनी की चिडिय़ा 2.0 बनने से रोक रही हैं?
मुझे लगता है कि एक राष्ट्र के रूप में, उद्योग के रूप में, संगठनों के रूप में, उद्यमियों के रूप में और नागरिकों के रूप में ऐसी कई चीजें हैं जिन पर हमें काम करने की आवश्यकता होगी। उनमें से कुछ में शामिल हैंः
- प्रत्येक छात्र और प्रत्येक नागरिक के बीच वैज्ञानिक मानसिकता को बढ़ावा देना।
- हमें अपने पारंपरिक मूल्यों को संजोए रखना चाहिए लेकिन साथ ही यह भी देखना चाहिए कि वैज्ञानिक सोच के साथ राष्ट्र निर्माण की परियोजना पूरी हो। इस तरह हम अतीत के अपने वैश्विक अर्थव्यवस्था के अगुआ होने की स्थिति को पुनः प्राप्त कर सकते हैं।
- हमें आईटी क्रांति की तरह और स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और उद्यमिता में क्रांति लाने की आवश्यकता है। यह उन नौकरियों को सृजित करने में मदद कर सकता है जिनकी हमें जरूरत है,जो अधिक पीढ़यिों को गरीबी से बाहर निकाले और साथ ही आवश्यक चीजों को बेहतर बनाएं।
- उद्यमियों को सुनने और सुने जाने के बीच के अंतर को समझने की जरूरत है।