टाटा घराने की ऐतिहासिक पारिवारिक पृष्ठभूमि
एतिहासिक तथ्यों के आधार पर समझा जाता है कि पारसी जाति सैकड़ों वर्ष पूर्व पर्शिया में निवास करती थी। पर्शिया वर्तमान में ईरान में है। वहीं से पारसी जाति दुनिया के अनेक देशों में फैली। सदियों पूर्व भारत में भी पारसियों का पदार्पण हुआ। विश्व के अनेक देशों में इनके फैलाव के बाद भी इनकी संख्या बहुत काम है। पारसी अग्नि की पूजा करते हैं, परन्तु सूर्य, चन्द्रमा तथा वायु की भी पूजा करते हैं। प्राचीन काल में पारसी सम्प्रदाय तीरंदाजी, घुडस़वारी तथा चरित्र निर्माण को अधिक अहमियत देते थे। बदलते दौर में अनेक क्षेत्रों में नवीनता आई। तथापि, जातीय शुद्धता तथा चरित्र की पवित्रता के प्रति ये आज भी सजग रहते हैं। ये लोग प्रायः अपने सम्प्रदाय में ही विवाह सम्बन्ध स्थापित करते हैं। मानसिक सुदृढत़ा एवं आचारण की गरिमा इनमें कूट – कूट कर भरी होती है। भारतीय समाज में पारसियों का बहुत आदर – सम्मान है। यहाँ उल्लेखनीय है कि पारसियों ने न केवल उद्योग जगत बल्कि राष्ट्रीय – सामाजिक गतिविधियों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
देश के आर्थिक विकास में पारसी समुदाय का योगदान भी अति महत्वपूर्ण है। परिश्रम एवं लगन के साथ कार्य को अंजाम देना इनकी चारित्रिक विशेषता है, राष्ट्रीय – अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पारसी समुदाय ने जो महत्वपूर्ण एवं सम्मान जनक मुकाम बनाया है वह हमारे लिए प्रेरक है, अनुकरणीय है।
गुजरात में एक कस्बाई क्षेत्र नवसारी है। जहाँ सदियों पूर्व पारसियों का एक जत्था आकर बस गया था। कहा जाता है कि कुछ समय तक यह इलाका पारसियों के प्रभाव में रहा। लेकिन, बाद में मुस्लिम आक्रान्ताओं ने इस इलाके को अपने प्रभाव क्षेत्र में ले लिया। ब्रिटिश शासन काल में ब्रिटिश संसद के सदस्य चुने जाने वाले दादाभाई नौरोजी नवसारी में ही पैदा हुए थे।
नौशेरवाँ जी टाटा का निवास स्थान भी नवसारी में ही था। यहाँ उल्लेखनीय है कि नौशेरवाँ जी टाटा, टाटा घराने के संस्थापक जमशेद जी टाटा के पिता थे। जमशेद जी टाटा की जन्मभूमि नवसारी ही थी। आपका निवास स्थान एक स्मारक के रूप में नवसारी में आज भी संरक्षित है। नौशेरवाँ जी टाटा पारसी सम्प्रदाय की उस साख से ताल्लुक रखते थे जो पौरोहित्य के कार्यों से जुड़ी हुई थी। बताया जाता है कि कई पीढिय़ों से इनके पूर्वज पौरोहित्य कार्य ही करते चले आ रहे थे। परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है और इसी क्रम में पारसी सम्प्रदाय का टाटा परिवार भी कार्य – व्यवहार के स्तर पर परिवर्तन को प्राप्त हुआ। फलतः, नौशेवाँ जी टाटा परिवार के पहले व्यक्ति थे जिन्होने सबसे पहले सदियों से चली आ रही परम्परा एवं मूल्यों के विरुद्ध जाकर कुछ नया करने का विचार बनाया और व्यापार को उन्होंने जीविकोपार्जन का साधन बनाने का फैसला किया।
उस समय नवसारी इलाका काफी पिछड़ेपन का शिकार था, इसलिए उन्होंने अपनी व्यावसायिक कर्मभूमि बम्बई को बनाया और वे नवसारी छोडव़र बम्बई आ गये।
बम्बई में उन्होंने व्यापार और बैंकिंग के जरिए अपने कार्य का श्री गणेश किया। उन्होंने नवसारी में रह रहे अपने इकलौते बेटे जमशेद जी को भी बम्बर्ई बुला लिया ताकि वे भी व्यावसायिक परिवेश के अनुभव व कुशलता के साथ भविष्य को संवारने में सक्षम बन सकें। अनुभव के साथ ही उनकी सोच को एक नई दिशा मिली और उन्होने तय किया कि अब उन्हें भावी पारसियों को इसी व्यावसायिक दिशा में अग्रसर करना है।