दूरदर्शी एवं कर्मवीर सर दोराबजी टाटा

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जमशेद जी टाटा के दो पुत्र थे, क्रमशः दोराब जी टाटा और सर रतन टाटा। जमशेद जी के निधन के पश्चात्‌ उनके बड़े पुत्र सर दोराब जी टाटा और छोटे पुत्र सर रतन जी टाटा ने उनकी विरासत को बखूबी संभाला तथा उसे नई बुलंदियों पर पहुँचाया। इस कार्य में जमशेद जी के चचेरे भाई रतन दादा भाई टाटा ने पूरा सहयोग दिया।

दोराब जी सन्‌ १८५९ में पैदा हुए। आपकी आरम्भिक शिक्षा बंबई के प्रोप्राइटरीः- हाईस्कूल में हुई। प्राथमिक शिक्षा के बाद कालेज की पढ़ाई के लिए आपको इंग्लैण्ड भेजा गया जहाँ १८ वर्ष की उम्र में आपने कैम्ब्रिज में गोनविले एण्ड कैअस कालेज में प्रवेश लिया। दोराब जी क्रिकेट और फुटबॉल के बहुत अच्छे खिलाड़ी थे। उन्होंने कैम्ब्रिज में पढ़ाई के दिनों में उक्त खेलों में अनेक पुरस्कार भी जीते। सन्‌ १८७९ में आप भारत वापस आ गये तथा जेवियर्स कालेज में दाखिला लिया।

दोराब जी ने शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात्‌ बाम्बे गजट में एक पत्रकार के रूप में अपने कार्य का शुभारम्भ किया। तीन-चार वर्ष बाद उन्होंने अपने पैतृत व्यवसाय में दिलचस्पी लेना शुरू किया। इस प्रकार आप १८८४ में व्यवसाय में आ गये। को कॉटन डिवीजन में एडजस्ट किया गया। अपने पिता जमशेद जी की इच्छानुसार वे उच्चकोटि के विद्वान डॉ. एच. जे. भाभा से मिले, जहाँ वे अपनी पुत्री मेहर के साथ रुके हुए थे। दोराब जी की मुलाकात मेहर से भी हुई। कालान्तर में दोनों की यह मुलाकात विवाह में परिवर्तित हो गयी, दोनों जीवन साथी हो गये। यह विवाह १८९७ में सम्पन्न हुआ, उस समय दोराब जी की उम्र ३८ वर्ष तथा मेहर की उम्र वर्ष थी। टाटा परिवार के अपने सभी पूर्ववर्ती महानुभावों की तरह उनमें भी नेतृत्व करने तथा लक्ष्य प्राप्ति के प्रति अतीव गम्भीरता जैसे महान गुण मौजूद थे। दूरदर्शी तथा कर्मवीर दोराब जी ने अपने पिता जमशेद जी के सभी सपनों को पूरा कर एक श्रेष्ठ पुत्र और सुयोग्य उत्तराधिकारी होने का सुपरिचय दिया। अपने नजदीक के रिश्तेदार आर. डी. टाटा की सहायता से सबसे पहले आपने उन परियोजनाओं पर ध्यान केन्द्रित किया जो आपके पिता जमशेद जी ने शुरू की थी। इन परियोजनाओं में सबसे पहले था एक आधुनिक लौह एवं इस्पात उद्योग की स्थापना- जिसका सुपरिणाम है टाटा स्टील। अपने उद्योगों के लिए विद्युत आपूर्ति हेतु आपने ही टाटा पावर की स्थापना की। आज ये दोनों टाटा उद्योग समूह के महत्वपूर्ण स्तम्भ हैं। आपका व्यक्तित्व प्रभावशाली एवं प्रेरक था। वे किसी भी परियोजना को अत्यंत गम्भीरता में लेते थे तथा उनकी बारीकियों पर बहुत ध्यान देते थे। आपने कच्चे लौह की तलाश में लगे वैज्ञानिकों तथा खोजकर्ताओं के साथ खनिज क्षेत्रों की भी यात्राएँ की थी।

दोराब जी के कुशल नेतृत्व में टाटा उद्योग समूह को व्यापकता प्राप्त हुई। विविध क्षेत्रों में व्यावसायिक विस्तार हुआ। १९१० में इंग्लैण्ड के राजा द्वारा आपको ट हुड (सर) की उपाधि से अलंकृत किया गया। जैसा कि लिखा जा चुका है कि दोराब जी को खेलों से बेहद प्रेम था, कालेज के दिनों से ही वे खेल से जुड़े हुए थे। आपने भारत में खेलों के गुणवत्तापूर्ण सुधार हेतु प्रयास किये और ओलंपिक मूवमेंट शुरू किये। आप भारतीय ओलंपिक संघ के सम्मानित अध्यक्ष भी रहे। १९२४ में आपने पेरिस ओलंपिक में प्रतिभागी भारतीय दल का सम्पूर्ण व्ययभार वहन किया था। आप अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ के भी सदस्य रहे।
सर दोराब जी भारत के अनमोल रत्न थे, उनका व्यक्तित्व अत्यंत दूरदर्शी एवं शानदार था।

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